Book Title: Shreechandra Charitra
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinharisagarsuri Jain Gyanbhandar

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Page 8
________________ एरवय खित्तम्मि चंदण-मवम्मि णुट्ठिय तव-समाहप्पा । अच्चुय-इंदो जाओ, तह रायहिराय-सिरिचंदो ॥ अर्थात्-भारत वर्ष के जैसा ही एक ऐरवत नाम का क्षेत्र है। वहां बृहण नाम के किसी एक नगर में चन्दन नाम का एक सेठ हुआ। उसने आयंबिल बद्ध मान तप. का अनुष्ठान किया। उस के माहात्म्य से वह बारहवे अच्युत नाम के देवलोक का इन्द्र हुआ। बाद में वही आत्मा राजाधिराज श्रीचन्द्ररूप में अवतीर्ण हो कर संसार की सर्वोत्कृष्ट सम्पत्तियों का स्वामी हुआ। अंत में संसार को सम्पत्तियों का सर्वथा त्याग करके एकान्तिक और प्रात्यन्तिक मोक्ष को पा गया । यावत् परम पुरुष परमात्मा हो गया। जिस चरित में ऐतिहासिक साधन उपलब्ध हों रसे ऐतिहासिक चरित कहते हैं । यह श्रीचन्द्र चरित्र भगवान् श्रीपार्श्वनाथ स्वामी के शासन में हुआ है. इस नाते ऐतिहासिक सीमा में आ जरूर जाता है । पर साधनों के अभाव में इसे ऐतिहासिक न कह कर पौराणिक मानना अधिक युक्ति संगत है । महामानव श्रीचन्द्र राजाधिराज, राजर्षि और केवलज्ञानी परमात्मा रूप इस इस चरित्र में हमारे सामने आते हैं। प्रत्येक चरित्र में हेय ज्ञेय और उपादेय वस्तुयें होती हैं । पाठक-गण हेय छोड दें, ज्ञेय को जान लें, और उपादेय को स्वीकार कर आत्मा का कल्याण करें।

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