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१७. पूज्यपाद श्रावकाचार- - इसका मूल या अनुवादके साथ कहींसे प्रकाशन हुआ है यह मुझे ज्ञात नहीं । ब्यावर भवनकी हस्तलिखित प्रतिपरसे इसकी प्रेस कापी तैयार की गई और अनुवाद भी मेरा ही किया हुआ है । इसकी प्रतिका क्रमांक ७४३, पत्र सं० ३ और आकार १२७ इंच है । प्रति पृष्ठ पंक्ति सं० १२ है और प्रति पंक्ति अक्षर संख्या ३५-३६ है । इसका लेखनकाल सं० १९६४ है । ब्यावर भवनको अन्य अपूर्ण प्रतियोंसे मूलके संशोधनमें सहायता मिली है ।
१८. व्रतसार श्रावकाचार —— यह श्रावकाचार कहींसे भी अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है । ब्यावर भवनमें इसकी हस्तलिखित एक प्रति है। जिसका एक ही पत्र है। उसका आकार १३ × ७ इंच और श्लोक सं० २२ है । इसपर न तो इसके रचयिताका नाम ही है और न लेखनकाल ही दिया गया है। इसी प्रतिसे इसकी प्रतिलिपि की गई है । इसका अनुवाद मेरा ही है ।
१९. व्रतोद्योतन श्रावकाचार - -यह श्रावकाचार भी अभी तक कहींसे भी प्रकाशित नहीं था । इसकी ब्यावर - भवनमे एक प्रति थी जिसका क्रमांक १६४ है और आकार ११ ।। × ८ इंच, पत्र स० २२, प्रति पृष्ठ पंक्ति-सं० १५ और प्रति पंक्ति अक्षर संख्या ३७-३८ है । इसीपरसे प्रेस कापी और अनुवाद किया गया । दुःख है कि इसे देखनेके लिए डॉ० नेमिचन्द्रजी शास्त्रीने आरा मँगाया था। पर उनके स्वर्गवास हो जानेसे प्रयत्न करनेपर भी यह प्रति वापिस नहीं आ सकी । यही सौभाग्य रहा कि मैं इसकी प्रेस कापी पहिले कर चुका था । इसका अनुवाद भी मेरा ही है ।
इस श्रावकाचारके मूल पृष्ठका संशोधन बम्बईके ऐ० पन्नालाल दि० जैन सरस्वती भवनकी प्रतिके आधारपर किया गया। प्रयत्न करनेपर भी अन्य स्थानोंसे इसकी दूसरी प्रतियाँ प्राप्त नहीं हो सकीं ।
बम्बई भवनकी प्रति प्रेस कापी कर लेनेके पश्चात् प्राप्त हुई । इसका आकार १० ॥ ४४ ॥ इंच है। पत्र संख्या ३० है, प्रति पृष्ठ पंक्ति संख्या १० और प्रति पंक्ति अक्षर संख्या ३७-३८ है । बम्बई भवन अब उज्जैन स्थानान्तरित हो गया है । इसलिए इसका संकेत 'उ' किया गया है। यह विक्रम संवत् १८३४ की लिखी है जैसा कि इसकी अन्तिम पुष्पिकासे स्पष्ट है ।
'वेदाग्निकर्मविधुसंयुतसंवत्सरेऽस्मिन् मासे मध्ये सितसुभिन्नतरे तृतीयायां चारुपुस्तकमिदं वर वारके च चान्द्रेभके परिसमाप्तिमगात् कृतान्यः । श्रोतृ-वाचकयो " 'मंगलावली भूयात्' ।
यह प्रति ब्यावर भवनकी प्रतिकी अपेक्षा बहुत शुद्ध है और इसीके आधारपर अनेक संदिग्ध एवं अशुद्ध स्थल शुद्ध और निश्चित किये जा सके । पर छूटे हुए श्लोकोंकी पूर्ति इससे भी नहीं हो सकी । छूटे हुए श्लोकोंके संख्यांक २८५-२८६, तथा ४४४ और ४४५ है । पूर्वापर सम्बन्धको देखते हुए उक्त स्थलपुर इन श्लोकोंका होना अत्यावश्यक है । अन्य शास्त्रोंके आधारपर उक्त श्लोकों हिन्दी अर्थ कर दिया गया है।
प्रस्तुत श्रावकाचारकी रचनामें संस्कृत व्याकरण-सम्बन्धी अशुद्धियाँ अनेक स्थलोंपर दृष्टिगोचर होती हैं । यथा - 'अनगार' के स्थानपर 'अनागार' (श्लोक ६ ) 'भगिनी' के स्थानपर 'भग्नी'
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