Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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( शान्तिसुधासिन्धु )
होता है वहां-वहां राग अवश्य होता है। जहां राग नहीं होता वहां द्वेष भी नहीं होता। अथवा जहां द्वेष नहीं होता वहां राग भी नहीं होता । यह राग-द्वेषका जोडा बराबर नौवें गुणस्थान तक बना रहता है। इसलिए जो मनुष्य भोगविलासोंमें लगा हुआ है तथा जो अनेक कुटंबियोंके साथ रहता है ऐसा जो मनुष्य यह बात कहता है कि मैं राग तो करता हूं परतु द्वेष किति नहीं करता तो समझना चाहिए कि वह मायाचारी करता है । जब वह कुटंबियोंसे प्रेम वा राग करता है तो उन कुटवियोंको हानि पहुंचानेवालोंपर वेष भी अवश्य करेगा । अथवा यो समझना चाहिए कि जो पुरुष अपने कुटंबियोंको हानि पहुंचानेपर वा मारनेपर हानि पहुंचावानेलेके साथ बा मारनेवालेके साथ द्वेष नहीं करता वह अपने कुटंबियोंके साथ राग भी नहीं करता । इससे सिद्ध होता है कि रागद्वेष दोनों साथ-साथ ही रहते हैं जहां राग होता है। वहां द्वेष अवश्य होता है ।
प्रश्न- दुःखं संसारिजन्तोर्वा सुखं स्यात्कीदृशं वद ?
अर्थ- हे भगवन् ! अब कृपाकर यह बतलाइये कि इन संसारी जीवोंका सुख कैसा होता और दुःख कैसा वा किस प्रकार होता है ? उत्तर -प्रमोहिजन्तोः परिवर्तते च,
दुःखस्य पश्चात्फलदं सुखं थे। भीमं च दुःखं हि सुखस्य पश्चात्,
लोके सदैवं दिनरात्रिवद्धि ॥ ३३ ॥
अर्थ- इस संसारमें जिसप्रकार दिनके बाद रात्रि और रात्रिके वाद दिन होता है उसी प्रकार मोह करनेवाले इन संसारी जीवोंका सुख दुःख बदलता रहता है । दुःखके बाद श्रेष्ठ फल देनेवाला सुख होता है और सुखके बाद भयंकर दुःख होता है। ___ भावार्थ- यह जीव प्रत्येक समयमें कर्मोका बन्ध करता रहता है। यदि वह कर्मका बन्ध अशुभ परिणामोंसे किया जाता है तो अशुभ कर्मोका बन्ध अधिक होता है और शुभ कर्मोंका थोडा भाग मिलता है
और यदि वह कर्मका बन्ध शुभ परिणामोंसे किया जाता है तो शुभ कर्मोका बन्ध अधिक होता है और अशुभ कर्मोका थोडा भाग मिलता