Book Title: Shant Sudharas Part 01 Author(s): Ratnasenvijay Publisher: Swadhyay Sangh View full book textPage 8
________________ भावना भवभञ्जिका लेखक : वैराग्यवेशनादक्ष पूज्य श्राचार्यदेव श्रीमद् विजय हेमचन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. के प्रशिष्यरत्न साहित्यप्रेमी मुनि श्री महाबोधि विजयजी म. शान्त सुधारस ! अद्भुत है यह ग्रन्थ ! ! रोमाञ्चक है इसमें भावनाओं का निरूपण । जैन साहित्य में संस्कृत भाषा में इस प्रकार के गेय काव्य विरल ही देखने को मिलते हैं । जैनों में जयदेव का 'गीतगोविन्द' काव्य प्रसिद्ध है । वैसा ही मधुर और लालित्य रस भरपूर काव्य है महोपाध्याय श्रीमद् विनय विजयजी विरचित शान्त सुधारस । सम्पूर्ण काव्य में शान्तरस का महासागर उछलता हुआ नजर आता है । पूर्व के कवियों ने भी शान्तरस को रसाधिराज की उपमा दी है । अध्यात्मरसिक लेखक की लेखनी में और वक्ता के वक्तव्य में ऐसे सभी रसों का वर्णन होते हुए भी अन्त में तो शान्तरस का ही वर्णन श्राता है अर्थात् उसी शान्तरस की धारा तक पहुँचाने के लिए ही अन्य रसों कायदा-कदा वर्णन किया जाता है । ग्रन्थ की पीठिका बनाते हुए महोपाध्यायजी ते बहुत ही सुन्दर बात कही है - " मनुष्य को सुखी बनना है किन्तु शान्ति के बिना सुखकहाँ से ? केवल किताबी ज्ञान से बन बैठे विद्वानों के लिए ( ६ )Page Navigation
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