Book Title: Sanskrit Praveshika
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Tara Book Agency

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Page 23
________________ स्त्री . तृतीय अध्याय कृत्-प्रत्यय ( Primary Suffixes ) १.धातुओं से संज्ञा, विशेषण, अव्यय आदि [ प्रातिपदिक ] शब्दों को बनाने के लिए जिन प्रत्ययों को जोड़ा जाता है उन्हें 'कृत्-प्रत्यय'' कहते हैं और उनके जुड़ने पर जो संज्ञादि शब्द बनते हैं उन्हें 'कृदन्त' (कृत् + अन्त ) कहते हैं। 2. कृदन्त शब्द जब संज्ञा अथवा विशेषण होते हैं तो उनके प्रथमा आदि विभक्तियों में रूप चलते हैं, अव्यय होने पर सदा एकरूप रहते हैं। 3. कुछ कृदन्त शब्द कभी-कभी क्रिया का भी काम करते है। जैसे-गम् + क्तगतः, गम् + क्तवतु-गतवान् / ' 1. (अ) 'कुत्' प्रत्ययों को वैयाकरणों ने मुख्य रूप से तीन भागों में विभक्त किया है-(क) कृत्य-प्रत्यय-ये संख्या में सात हैं। तव्यत्, तव्य, अनीयर, केलिमर, यत्, क्यप् और व्यत् / ये कर्मवाच्य और भाववाच्य में ही प्रयुक्त होते हैं-(ख) उणादि प्रत्यय-'ण' प्रत्यय से प्रारम्भ होने वाले प्रत्यय / ये प्रत्यय बहुत अधिक हैं। जैसे-+ उण-कारुः (करोतीति कारः); पृ+ उपच-परुषम, आदि / (ग) शेष कृत्-प्रत्यय-क्त, क्तवतु, मुल् प्रादि / (आ) व्यावहारिक दृष्टि से कृदन्तों के दो प्रकार संभव है--(क) संजासून कृदन्तजो क्रिया का स्वरूप अपने अन्दर रखते हुए भी व्यवहार में संज्ञा शब्द की तरह प्रयुक्त होते हैं। ये भाववाचक, कर्तृवाचक आदि के भेद से कई प्रकार के हैं। (ख) क्रिया-सूचक कृदन्त--जो यद्यपि सुबन्त ही हैं परन्तु विशेष रूप से क्रिया को व्यक्त करते हैं। कभी-कभी कुछ पूर्ण क्रिया के रूप में भी प्रयुक्त होते हैं। ये वर्तमान कालिक, भूतकालिक, भविष्यत् कालिक, विध्यर्थक, निमित्ता थंक, पूर्वकालिक आदि कई प्रकार के हैं। 2. तिङन्त और कृदन्त में अन्तर--यापि 'तिङ्' और कृत्' प्रत्यय धातुओं में ही जुड़ते हैं परन्तु तिङन्त शब्द सदा क्रियारूप ही होते हैं और उनमें अन्य प्रत्यय नहीं जुड़ते हैं जबकि कृदन्त शब्द संज्ञादिरूप होते हैं तथा उनमें बाद में 'सुप्' प्रत्यय जोड़े जाते हैं। ( देखिए सूत्र--धातोः 3. 1.61, कृदतिङ् 3. 1.63) / 3. 'गतः' आदि कृदन्त शब्द यद्यपि क्रिया का भी काम करते हैं परन्तु वास्तव में ये विशेषण ही हैं क्योंकि 'गतः' आदि का जो रूप होता है वह अपने विशेष्य के अनुरूप होता है / जैसे--तः गतः, सा गता। शतृ, शानच् ] 1: व्याकरण [श (4) 'क्' युक्त कृत्-प्रत्यय के जुड़ने पर धातु में 'ऋ इ3' रहते हैं एवं 'क'-लिए कृत-प्रत्यय के जुड़ने पर वे र य ब हो जाते हैं। जैसे-दन + क्त-वृष्टः, दुश् + तुमुन् - द्रष्टुम्, स्वप्+क्त्वा- सुप्त्वा, स्वप् +तुमुन्-स्वप्तुम्, यज्+क्त-इष्ट, यज्+तव्यत् - यष्टव्यम्, वच् + तव्यत् = वक्तव्यम्, वच् + क्त-उक्तः, प्रहगृहीतः, ग्रह+तुमुन् -ग्रहीतुम् / अपवाद-पृच्छन् (प्रच्छ+शत), उपकृत्य वादि। (1) वर्तमानकालिक कृत्-प्रत्यय ( Present Participle )-शतृ, शान वर्तमानकाल में किसी कार्य के लगातार होते रहने के अर्थ में परस्मैपदी धातुओं से शतृ ( अत् ), आत्मनेपदी धातुओं से शानच (आन या मान) और उभयपके धातुओं से दोनों प्रकार के. प्रत्यय होते है / जैसे-T8+ शतृ-पठत् (पढ़ना हुआ) वृष् + शानच् - वर्धमान ( बढ़ता हुआ)। (क) परस्मैपदी धातुओं से 'शतृ' प्रत्ययान्त रूपधातु अर्थ नपुं० पुं० (अ) (अन्) (अन्ती-अती) भू-होना भवत् भवन् भवन्ती पठ-पढ़ना पठत् पठन् पठन्ती पा-पीना पिबत् पिबन् पिबन्ती 1. (क) 'शतृ' और 'शान' प्रत्ययान्त शब्द कर्ता के विशेषण होते हैं। वैसे गच्छन् बालकः / वर्धमानेन बालकेन / पठन्त्याः नार्यः / पठन्ती स्त्री। वर्षमा वनम् / (ख) इनके रूप तीनों लिङ्गों में चलते हैं। जैसे-भत' प्रत्ययान्त शन्नों के रूप पुं० में धावत्', स्त्री० में 'नदी और नपुं० में 'जगत्' की तरह। 'शानच्' प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुं० में 'राम', स्त्री० में 'पता' और नई० में 'ज्ञान' की तरह। (ग) कुछ अन्य वर्तमानकालिक दन्त रूप / जैसेआस्+शानच्-आसीनः। पू+शानन्-पवमानः / यज् + शानन्-यजमानः विद् + शतृ-विदत् / विद + वसु -विद्वस् / (घ) ऊपर के उदाहरण कर्तृवाच्य में हैं। यदि कर्मवाच्य करेंगे तो कर्मवाच्य का प्रत्यय जुड़ेगा और सभी धातुओं में 'शान' प्रत्यय ही जुड़ेगा,शत नहीं। जैसे-प) पठ्धमान ( पठ् + य+शानच् )-जो पढ़ा जा रहा हो। प्रयोग होगा पठ्यमानं पुस्तकम् / पठ्यमानः ग्रन्थः आदि। 2. (क) अदादि, स्वादि, क्वादि, तनादि और जुहोत्यादि में 'अती' होता है / (ख) 1. लटः शतृशानचावप्रथमासमानाधिकरणे / अ० 3.2. 124. 2. ईदासः / अ०७.२.८३. 3. पूयजोः शानन् / अ० 3. 2. 128. 4. विदेःशतुर्वसुः / अ. 7.1.3

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