Book Title: Sanskrit Praveshika
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Tara Book Agency

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Page 52
________________ द्वन्द.] 1. व्याकरण [61 संस्कृत-प्रवेशिका [8: समास रहने पर भी यह द्वन्द्व नहीं है क्योंकि द्वन्द्व समास केवल संज्ञा-पदों में होता है। अतः इससे अन्तर है)। जैसे-कृष्णश्च श्वेतश्च % कृष्णश्वेतः (काला. और सफेद - अश्व); स्नातश्च अनुलिप्तश्च % स्नातानुलिप्तः (स्नान और अनुलेप किया हुआ मनुष्य); चरञ्च अचरञ्च % चराचरम् (स्थावर और जङ्गमम् जगत् ); कृतञ्च अकृतञ्च = कृताकृतम् ( किया हुआ और नहीं किया हुआ कर्न)। द्विगु समास ( Numeral Compound) जब कर्मधारय समास में पूर्वपद संख्या तथा उत्तरपद संज्ञा हो तो वहाँ द्विगु समास होता है यदि वहाँ तद्धितार्थ (तद्धित प्रत्यय का अर्थ ) अथवा समाहार (समूह) का बोध हो (संख्यापूर्वी द्विगुः / तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च)।' यह समास तीन परिस्थितियों में होता है --1. या तो उसके अनन्तर कोई तद्धित प्रत्यय लगता हो या (2) वह किसी अन्य शब्द के साथ समास में आया हो या (3) किसी समूह का बोधक हो / जैसे (क) तद्धितार्थ में-पण्णा मातुणाम् अपत्यं पुमान् - पाण्मातुरः (= कातिकेयः -पष् + मातृ+'अ' तद्धित प्रत्यय); द्वयोः मात्रोः अपत्यं पुमान् = द्वैमातुरः (गणेशः); द्वाभ्यां गोभ्यां क्रीतः = द्विगुः (दो गायों से खरीदा गया); पञ्चभिः गोभिः क्रीतः = पञ्चगुः। (ब) शब्दान्तर के साथ समास में ( उत्तरपद द्विगु)-इसमें दो समास होते हैं। जैसे—पच गावः धनं यस्य सः पञ्चगवधनः (द्विगुगर्भ बहुव्रीहि / यहाँ 'पञ्चगव' में द्विगु समास है, परन्तु यह तभी संभव हुआ है जब यह 'धन' के साथ पुनः समस्त हुआ है। यदि 'धन' के साथ पुनः समास में न आता तो 'पञ्चगव' में द्विगु नहीं होता ); द्वे अह्नि जातस्य = द्वयजातः (द्विगुगर्भ तत्पुरुष)। (ग) समाहार में समाहार अर्थ में समस्त पद नपुंसकलिङ्ग एकवचन में रहता है। जैसे-पञ्चानां पात्राणां समाहारः = पञ्चपात्रम्; त्रयाणां भुवनानां समाहार विभुवनम; चतुर्णा युगानां समाहार:-चतुर्युगम् पञ्चानां गवां समाहारापच गवम् (पाँच गायों का समुदाय); त्रिसृणां रात्रीणां समाहारः विरात्रम् (तीन रातों का समुदाय; संख्षा शब्द के पहले रहने पर समास में रात्रि शब्द नपुंसकलिङ्ग हो जाता है); त्रयाणां लोकानां समाहारः- त्रिलोकी (तीन लोकों का समुदाय; पात्र, भुवन आदि को छोड़कर वट, लोक, मूल आदि अकारान्त शब्दों के साथ समस्तपद ईकारान्त = स्त्रीलिङ्ग होता है); पञ्चानां मलानां समाहारः-पञ्चमूली; शतानाम् अब्दानां समाहारः = शताब्दी; पञ्चवटी; अष्टाध्यायी; सप्तशती। द्वन्द्व समास (Copulative Compound) जब दो या दो से अधिक संज्ञायें 'च' शब्द से जुड़ी होती हैं तो उनमें द्वन्द्व समास होता है / इसमें सभी संज्ञा पदों का अथवा उनके समूह का प्राधान्य होता है (चार्थे द्वन्द्वः / प्रायेणोभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः) / विग्रह करने पर प्रत्येक पद के साथ 'च' का प्रयोग होता है / इसके प्रमुख 3 प्रकार हैं-(१) इतरेतरयोग द्वन्द्व, (2) समाहार द्वन्द्व और (3) एकशेष द्वन्द्व / (1) इतरेतरयोग द्वन्दू-जहाँ एक पद दूसरे पद से इस प्रकार जुहा हो कि दोनों एक दूसरे से अलग-अलग प्रधान भाव रक्खें / जैसे-रामच लक्ष्मणश्च-रामलक्ष्मणी (राम और लक्ष्मण); रामश्च भरतन लक्ष्मणश्च शत्रुध्नचरामभरतलक्ष्मणशत्रुनाः; कन्दच मूलच फलञ्च - कन्दमूलफलानि; कुक्कुटा मयूरी च%D कुक्कुटमयूर्यो (मुर्गा और मोरनी); दधि च पयश्व दधिपयसी (दही और दूध ); वाच मनन वाङ्मनसे ('मनस्' में समासान्त 'अ' जुड़ने से वह अंकारान्त नपुसंकलिज बन गया है। अतः वाङ्मनसे रूप बना); गङ्गायमुने; युधिष्ठिरभीमी; इन्द्राग्नी। नियम-(१) जब दो पदों में समास होगा तो समासान्त पद द्विवचन में होगा और जब तीन या उससे अधिक पदों में समास होगा तो बहुवचन में होगा / जैसेशिवकेशवी, हरिहरगुरवः / (2) बाद वाले पद का जो लिङ्ग रहता है वही समस्तपद का लिङ्ग रहता है। जैसे—कन्दमूलफलानि, कुक्कुटमयूर्यो। (3) ऋकारान्त (विद्या या योनि सम्बन्ध वाचक) पदों के रहने पर अन्तिम पद के ठीक पूर्ववर्ती 'ऋ' को 'आ' हो जाता है। जैसे-माता च पिता च = मातापितरी (मातृ + पितृ); होता च पोता च उद्गाता च% होतृपोतोद्गातारः। (2) समाहारद्वन्द्व-जहाँ परस्पर जुड़ी हुई संज्ञाओं में समूह (समाहार या इकट्ठपन) का भाव प्रमुख हो / अतः इसमें समस्त पद सर्वदा नपुंसकलिङ्ग एकवचन में रहता है। जैसे—पाणी च पादौ च पाणिपादम् (हाथ और पैर / यहाँ दोनों के समूह का भाव ज्ञात हो रहा है ); आहारश्च निद्रा च भयञ्च = आहारनिद्राभयम्, धनूंषि च शराश्च = धनुःशरम् (धनुष और बाण)। निम्न अवस्थाओं में समाहार द्वन्द्व समास होता है(क) प्राणि, वाद्य तथा सेना के अङ्गवाचक शब्दों में हस्तौ च पादौ - हस्तपादम ( हाथ और पैर); मेरी च पटहश्च = भेरीपटहम् (भेरी और 1. केवल संख्यावाची शब्द के पूर्ववर्ती होने पर विगु' नहीं होता है / जैसे-सप्त, ऋषयः = सप्तर्षयः (आकाशस्थ सात तारे)। यहाँ कर्मधारय समास है क्योंकि यहाँ न तो तद्धितार्थ है और न समाहार। किन्हीं सात ऋषियों के लिए इसका। प्रयोग नहीं है अपितु खास संशा का बोधक है /

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