________________ 170] संस्कृत-प्रदेशिका [पाठ :6. सोते हुए भी विद्वज्जन सब कुछ देखते हैं = शयानाः अपि विद्वज्जनाः सर्व पश्यन्ति / 10. शत्रु के कटु वचनों को सहन करते हुए हम कैसे रहेंगे = शत्रोः कटु वचनानि सहमानाः वयं कथं स्थास्यामः ? नियम-३२. 'जाते हुए', 'सुनते हुए' आदि गौण क्रियाओं का अनुवाद 'शतृ' और 'शान' प्रत्ययों के द्वारा किया जाता है। अभ्यासक-गाड़ी चलाते हुए ड्राइवर से वार्तालाप करना उचित नहीं है। वन में रहते हुये भी राम ने रावण को मार डाला / मैंने कालेज जाते हुए मार्ग में सर्प को देखा / ज्ञान प्राप्त करते हुए वह धीरे-धीरे विद्वान् बन गया। कुछ समय बाद आप वृद्ध हो जायेंगे / बहुत प्रकार के कष्टों को सहते हुए भी सीता प्रसन्न है। ज्ञानमार्ग में वर्तमान रहने पर भी वह भक्तिमार्ग का आश्रय लेगा / क्या सीता ने रावण के यहाँ राम के आगमन की प्रतीक्षा करते हुये समय बिताया? खाना खाते समय बोलना हानिकारक है। कार्य करते हुए वह मेरे वचनों को सुनेगी। पाठ: वाच्य-परिवर्तन ( Change of Voice) सदाहरण-वाक्य [ कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य और भाववाच्य का प्रयोग ] 1. देवदत्त गांव जाता है = देवदत्तः ग्रामं गच्छति (कर्तृ०)। देवदत्तेन ग्रामो गम्यते (कर्म०)। 2. मैं तुम दोनों को देखता हूँ = अहं युवां पश्यामि (कर्तृ०)। मया युवा दृश्येथे (कर्म)। 3. हम सब फल खाते हैं = वयं फलानि खादामः (कर्तृ.)। अस्माभिः फलानि खाधन्ते (कर्म)। 4. आप जो चाहते हैं, वह सब मैं करता है = भवान् यदिच्छति तत् सर्वमहा . करोमि (कर्तृ.)। भवता यदिष्यते तत् सर्व मया क्रियते (कर्म)। 5. सीता पाठशाला में पुस्तक पढ़े 3 सीता पाठशालायां पुस्तकं पठेत् (कर्तृ०)।। सीतया पाठशालायां पुस्तकं पठ्येत् (कर्म)। 6. तुम हंसते हो और वह जोर से रोती है = त्वं हससि, सा च उच्चैः रोदिति (कर्तृ०)। त्वया हस्थते तया च उच्च रुचते (भाव)। 7. हम सब पढ़ते हैं और वे सब सोते हैं = वयं पठामः ते च स्वपन्ति (कर्तृ०)।। अस्माभिः पठ्यते तैः च सुप्यते (भाव०)। 8. वह कूदता है, और तुम काँपते हो = सः कूदते त्वं च कम्पसे (कर्तृ.) तेन कुर्वते त्वया च कम्प्यते (भाव०)।. 6. महेश रोमा था और रीता भी रोयेगी - महेशः अरोदीत्, रीता पापि, 'जाते हुए; वाच्य परिवर्तन] 2: अनुवाद [171 रोदिष्यति (कर्तृ.) / महेशेन अरुद्यत, रीतया चापि रोविष्यते (भाव)। नियम-३३. 'सकर्मक' धातुओं से कर्तृवाच्य (Active Voice) और कर्मवाच्य (Passive Voice) के वाक्य बनते हैं। 'अकर्मक' धातुओं से (देखिये, पृ०.७०, टि०१) कर्तृवाच्य और भाववाच्य ( Impersonal Voice ) के वाक्य बनते हैं। अकर्मक धातुयें कभी-कभी उपसर्ग के लगने पर सकर्मक भी हो जाती हैं। जैसे-सा लज्जामनुभवति / 24. कर्तृवाच्य में कर्ता प्रधान होता है। अतः (क) क्रिया के पुरुष, वचन भावि (कृदन्त किया का लिङ्ग) कर्ता के अनुसार होते हैं। (ख) का में प्रथमा विभक्ति होती है। (ग) कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। (घ) धातुओं के सभी मूल रूप कर्तृवाच्य में ही होते हैं। 'कर्तरि प्रत्यये जाते प्रथमा कर्तृकारके / द्वितीयान्तं च कर्म स्यात् कर्वधीनं क्रियापदम् // ' 25. कर्मवाच्य में कर्म प्रधान होता है। अतः (क) क्रिया के पुरुष, वचन आदि कर्म के अनुसार होते हैं। (ख) का में तृतीया विभक्ति होती है। (ग) कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है (घ) शेष अन्य सभी कारक कर्तृवाच्य की ही तरह होते है। (छ) कर्मवाच्य की क्रिया सार्वधातुक लकारों में 'य' प्रत्यय जोड़कर बनाई जाती है और उसके रूप केवल आत्मनेपद में ही चलते हैं। (जैसेलिख्+य+ते लिख्यते / 'कर्मणि प्रत्यये जाते तृतीया कर्तृकारके / प्रथमान्तं च कर्म स्यात् कर्माधीनं क्रियापदम् / / ' 36. भाववाच्य में भाव प्रधान होता है। अतः (क) क्रिया प्र० पु० एकवचन में ही होती है / (ख) कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है / (ग) कर्म का अभाव रहता है। (घ) भाववाच्य की क्रिया बनाने की प्रक्रिया कर्मवाच्य की क्रिया की (प्रक्रिया की तरह ही है (जैसे---भू+य+ते = भूयते)। "कर्माभावः सदा भावे तृतीया चैव कर्तरि / प्रथमः पुरुषश्चकवचनच त्रियापदे / / ' नोट-वाच्य-परिवर्तन में कर्ता, कर्म और क्रिया पर ही असर पड़ता है, शेष वाक्यांश अपरिवर्तित रहता है। अभ्यास-बह ग्रन्थ पढ़ता है और राधा खेलती है। समता अथवा गीता 1. क्रिया में जो 'तिप्' आदि प्रत्यय जुड़ते हैं वे कत्ता, कर्म या भाव में होते हैं / अतः जब किया में प्रयुक्त 'तिप्' आदि प्रत्ययों के द्वारा कर्ता उक्त होता है तब कर्ता की प्रधानता होती है और वहाँ कर्ता में प्रातिपादिकार्थ से प्रथमा होती है। इसी प्रकार जब कर्म उक्त होता है तब कर्म प्रधान होता है और वहाँ कर्म में प्रातिपदिकार्य से प्रथमा होती है। भाव उक्त होने पर भाव प्रधान होता है। सी भाभार पर वाच्य के तीन भेद किये जाते हैं /