________________ / संस्कृत-प्रवेशिका [पाठ : 7-8 अभ्यास ६-शायद कल गुरुजी दिल्ली जायें / मुझ गरीब पर दया कीजिए। आप ही बतायें उसे कैसे प्रसन्न करूं? चञ्चला लक्ष्मी की उपासना मत करो / आप सब गुरुजनों को नमस्कार करें। शिव जी आप सब की रक्षा करें। किसी से द्वेष नहीं करना चाहिए / सज्जनों से कभी द्रोह मत करो। सुख अथवा दुःख की प्राप्ति में हर्ष अथवा विषाद नहीं करना चाहिए। जामो, विजय प्राप्त करो। भगवान् राम की जय हो। हे राजन् / मैं आपका और क्या अभीष्ट करूं / आर्या जी, यह भासन है, आप इस पर बैठें। हमेशा सत्संगति करना चाहिए। सदाचारी शिष्यों को गुरुजन समस्त विद्याओं का रहस्य खोल दें। तुम घर जाओ और अध्ययन करो। हे पुत्री ! तुम वीरपुत्र की जननी बनो / गुरुजन व्याकरण शास्त्र पढ़ायें / पाठ 7 : अपूर्ण (वर्तमान-भूत-भविष्यत् ) काल ( Continuous Tenses ) उदाहरण-वाक्य ['शतृ' और 'शानच्' प्रत्ययों का प्रयोग ] 1. वह घर जा रहा है - सः गृहं गच्छन् अस्ति ( गच्छति)। 2. सब लड़कियां पुस्तकें पढ़ रही हैं 3 ताः बालिकाः पुस्तकानि पठन्त्यः सन्ति (पठन्ति)। 3. क्या वह काँप रहा है और तुम सो रही हो कि सः कम्पमानः अस्ति (कम्पते) त्वं च शयाना असि (शेषे)। 4. उन सब के चचल नेत्र क्या देख रहे हैं = तेषां चञ्चलनेत्राणि किं पश्यन्ति सन्ति (पश्यन्ति)? 5. रीता वहाँ सिंह को देख रही है और यहाँ तुम दोनों पढ़ रहे हो - रीता ता सिंहं पश्यन्ती अस्ति (पश्यति) युवा च अत्र पठन्तौ स्थः (पठथः)। 6. तुम कहाँ जा रहे थे = त्वं कुत्र गच्छन् आसीः (अगच्छः)? 7. आप उस समय क्या देख रहे थे भवान् तदानीं किं पश्यन् आसीत् (अपश्यत्)? 8. लड़कियाँ नदी के किनारे जल पी रही थीं = बालिकाः नद्यास्तटे अपः पिबन्त्यः आसन् (अपिबन्)। 6. हम उस समय घर से आ रहे थे% वयं तदानी गहादागच्छन्तः आस्म (आगच्छाम)। 10. हम दोनों सायंकाल खेल रहे होंगे = आवां सायं क्रीडन्ती भविष्यावः, (क्रीडिष्यावः)। 11. परिक्षार्थी उत्तर-पुस्तिकायें लिख रहे होंगे = परीक्षार्थिनः उत्तरपुस्तकानि लिखन्तः भविष्यन्ति (लिखिष्यन्ति)। अपूर्ण काल; 'जाते हुए' आदि] 2 / अनुवाद 12. बालिका पढ़ रही होगी और तुम देख रहे होगे = बालिका पठन्ती भविष्यति _(पठिष्यति ) त्वं च पश्यन् भविष्यसि ( द्रक्ष्यसि ) / नियम-३०. 'पढ़ रहा', 'जा रहा' आदि अपूर्ण-कालिक क्रियाओं का अनुवाद सामान्य काल की ही तरह होता है (देखिए कोष्ठक क्रिया)। कभी-कभी अपूर्णकालिक क्रियाओं का अर्थ प्रकट करने के लिए तदर्थक धातुओं में 'शत' (अत्) और 'शान' (मान-मान) प्रत्ययों का भी प्रयोग किया जाता है। 'शतृ' और 'शान' प्रत्ययान्त शब्द विशेषण होते हैं, अतः उनका लिङ्ग, विभक्ति और वचन अपने विशेष्य के अनुसार होते हैं / कर्ता के पुरुष का इन पर प्रभाव नहीं पड़ता है। 31. 'शतृ-शानच्' प्रत्ययान्त शब्दों के साथ 'अस्' ( सत्ता ) धातु का भी प्रयोग (कर्ता के पुरुष और वचन के अनुसार) होता है। 'अस्' धातु पाली क्रिया ही मुख्य क्रिया होती है और उसका प्रयोग कालानुसार ही होता है। अभ्यास ७-गोपाल स्कूल में पढ़ रहा है। तुम सब यह क्या कर रहे हो? आकाश में बादल गरज रहे हैं। वे दोनों लड़कियाँ मालायें बना रही थीं। गीता देख रही थी और सुशीला गाना गा रही थी। वह रामायण का पाठ कर रहा होगा / वृक्ष के पत्ते झड़ रहे थे। वे सब पत्र लिख रहे होंगे / तुम फल खा रहे थे। राधा सो रही होगी और कृष्णा रेडियो सुन रही होगी / छात्र कक्षा में अध्यापक की प्रतीक्षा कर रहे थे। राधा अथवा श्याम आ रहा होगा। - पाठ 8 : 'जाते हुए', 'सुनते हुए' श्रादि वाक्य उदाहरण-वाक्य [ 'शतृ' और 'शानच्' प्रत्ययों का प्रयोग - 1. राजमार्ग से जाने हुए सुन्दर राजकुमार को देखो राजमार्गेण गच्छन्तं सुन्दरं राजकुमारं पश्य / 2. उपदेश देते हुए अध्यापक ने छात्रों को दण्ड दिया = उपदिशान अध्यापकः छात्रानदण्डयत् / 3. वह मधुबाला को देखते हुए हंसता है = सः मधुबाला पश्यन् हसति / 4. कुछ समय में वह युवक हो जायेगा = गच्छता कालेन : युवकः भविष्यति / 5. मैं देखते हुए और हंसते हुए सुनता है- अहं पश्यन् हसन् च शृणोमि / 6. वह प्रतीक्षा करते हुए बैठी थी = सा प्रतीक्षमाणा अतिष्ठत् / 7. प्रतिदिन बढ़ता हुआ धन उसके ऐश्वर्य का कारण है-प्रतिदिन वर्धमान धनं तस्य ऐश्वर्यस्य कारणम् / 8. मेरे रहते हुए तुम कैसे दुःखी होओगी - ममि सिति / त्वं कथं दुःखिनी भविष्यसि /