Book Title: Sanskrit Praveshika
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Tara Book Agency
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________________ संस्कृत-प्रवेशिका [6: शब्दरूप जगतः जगतोः जगताम् प० नाम्नः नाम्नोः नाम्नाम् जगति " जगत्सु स० नाम्नि, नामनि , नामसु है जगत् 1 हे जगती! हे जगन्ति ! सं० हे नाम,नामन् ! हे नाम्नी, हे नामानि ! नामनी! (41) नकारान्त 'कर्मन्" (कर्म): (42) नकारान्त 'अहन्' (दिन): कर्म कर्मणी कर्माणि प्र०, द्वि० अहः अह्नी, अहनी अहानि कर्मणा, कर्मभ्याम् कर्मभिः तृ० अह्ना अहोभ्याम् अहोभिः कर्मणे कर्मभ्यः च. " अहोभ्यः कर्मणः पं० अल " कर्मणोः कर्मणाम् .. अहोः अलाम् कर्मणि कर्मसु स० अह्नि, अहनि " अहासु, अहस्सु * हे कर्म,कर्मन् / हे कर्मणी ! हे कर्माणि ! सं० हे अहः ! हे अह्री, हे अहनी ! हे अहानि ! - (43) सकारान्त 'मनसू (मन): (44) सकारान्त 'धनुस्" (धनुष): मनः मनसी मनांसि प्र०, द्वि० धनुः धनुषी धषि 1. इसी प्रकार-चर्मन् (चमड़ा), छमन (छल, वेष), जन्मन् (जन्म), वर्मन् ( कवच ), वर्मन् ( मार्ग ), शमन् (सुख), वेश्मन् (घर), ब्रह्मन् (ब्रह्म), जन्मन् (जन्म), पर्वन् (जोड़), मर्मन् (मर्मस्थान), भस्मन् (राख), नर्मन् (हंसी मजाक, परिहास), पर्वन् (त्योहार, गांठ), लक्ष्मन् (चिह्न, दाग), सद्मन् (महल) आदि भन्' भागान्त ('अन्' का 'अ' म्-संयुक्त या र-संयुक्त वर्ण में मिलित रहता है) नपुं० शब्दों के रूप बनेंगे। २.असर्वनामस्थान हलादि विभक्तियों में 'महन्' को अहः (न>र) हो जाता है। 3. इसी प्रकार-पयस् (जल, दूध), अम्भस् (जल), नभस् (आकाश), आगस् (दोष, पाप), तपस् (तप), यशस् (यश), रजस् (धूलि ), तमस् (अन्धकार), अवस् (रक्षा), वक्षस्, उरस् ( वक्षस्थल), चेतस् (चित्त), वासस् / (वस्त्र ), शिरस् (मस्तक), एनस् (पाप), वर्चस् (तेज), तेजस् (तेज, प्रकाश ), वयस् (आयु), वचस् (वचन), तरस् (वेग), अयस् (लोहा), सरस् (सालाब), औकस् (घर), ओजस् (प्रकाश), छन्दस् (छन्द), रक्षस् (राक्षस), रहस् (रहस्य) रोषस (नदी का तट, बाँध), प्रेयस् (प्रिय), सदस् (सभा, संसद) आदि 'अस्' भागान्त नपुं० शब्दों के रूप बनेंगे। 4. इसी प्रकार-आयुस् (आयु), वपुस् (शरीर), चक्षुस् (आँख) ज्योतिस् (प्रकाश), हविस् (हरि), सर्पिस् (पी). यजुस् (यजुर्वेद ) धादि। हलन्त नपुं०, सर्वनाम] 1: व्याकरण मनसा मनोभ्याम् मनोभिः तृ धनुषा धनुभ्याम् धनुभिः मनसे " मनोभ्यः च. धनुषे धनुाम् धनुर्यः मनसः पं० धनुषः धनुाम् धनुर्यः मनसोः मनसाम्ब 0 धनुषः धनुषोः धनुषाम् मनसि " मनःसु-स्सु स० धनुषि " धनुःषु, धनुष्षु है मनः ! हे मनसी! हे मनांसि ! सं० हे धनुः ! हे धनुषी ! हे धषि ! सर्वनाम शब्द ( Pronouns) (पुरुष वाचक सर्वनाम = Personal Pronouns) (45) 'अस्मदु' (मैं=First Person) : (46) युष्मद् (तुम-Second Person) : अहम् आवाम् वयम् प्र० त्वम् युवाम् यूयम् माम् [मा]., [नौ] अस्मान[नः] वि० स्वाम[त्वा] " [वां] युष्मान् [व] मया ___आवाभ्याम् अस्माभिः तृ त्वया युवाभ्याम् युष्माभिः मह्यम् [म], [नौ] अस्मभ्यम्[नः] च तुभ्यम्[ते]" [व] युष्मभ्यम [वः] मव " अस्मत्त्व त युष्मत मम मि] आवयोः [नौ] अस्माकम् [नः] प० तव [ते] युवयोः [वा] युष्माकम् [व] मयि अस्मासु स त्वयि " युष्मासु विशेष-'अस्मद्' और 'युष्मद्' शब्द के रूप तीनों लिङ्गों में एक समान होते हैं। (47) 'तद्' (वह = He=Third Person) पुं० (48) 'तदु' (वह = She) स्त्री. सातौ ते प्र० सा ते ताः तम् तान् वि० तामा तेन ताभ्याम् तै तृ० तया ताभ्याम् ताभिः तस्मै " तेभ्यः च तस्यै " ताभ्यः तस्मात् पं० तस्याः तस्य तयोः तेषाम् . 0 " तयोः तासाम् तस्मिन् " तेषु स९ तस्याम् // तासु (46) 'तद्' (वह = It ) नपुं०-- तद्, तत् ते तानि प्र०, द्वि० शेष पुं० की तरह / 'उस्' भामाम्त नपुं० शब्दों के रूप बनेंगे / इन शब्दों को कहीं-कहीं 'षकारान्त' भी लिखा जाता है।

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