Book Title: Sanskrit Praveshika
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Tara Book Agency

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ संस्कृत-प्रवेशिका [8 : समास कर्मधारय ] 1 : व्याकरण [86 पति: लक्ष्मीपतिः (लक्ष्मी का स्वामी); जगतः स्रष्टा जगत्वष्टा ( जगत् की सष्टि करने वाला); विष्णोः पूर्मविष्णुपुरम् (विष्णु की नगरी; 'पुर' से समासान्त 'अ'); सख्युः पन्थाः भविपथः (मित्र का मार्ग; 'पथिन्' से समासान्त 'अ')। 6. सप्तमी सत्पुरुष (सप्तम्यन्त + प्रथमान्त)-कर्मणि कुशलः कर्मकुशलः (काम करने में प्रवीण); सभायां पण्डितः सभापण्डितः (सभा में विद्वान्); क्रीडायां पपलक्रीडापलः (खेलने में पञ्चल); अक्षेषु शौण्ड:-अक्षशोण्डः (पासे खेलने में चतुर); आतपे शुष्कः-आतपशुष्कः (धूप में सूखा)। कर्मधारय (समानाधिकरण तत्पुरुष = Appositional Compound ) समानाधिकरण तत्पुरुष समास को कर्मधारय समास कहते हैं। इसमें दोनों पद प्रथमा विभक्ति में होते है। अतः इसे प्रथमा तत्पुरुष भी कहा जा सकता है। द्वितीयादि विभक्तियों के साथ होने वाले तत्पुरुष समास में दो पदों के मध्य में कोई कारक का सम्बन्ध (क्रिया का प्रध्य के साथ सम्बन्ध / जैसे-चौराद् भयमन्चौरभयम् ) या दो द्रव्यों का सम्बन्ध (जैसे--राज्ञः पुरुषाम्राजपुरुषः) होता है परन्तु कर्मधारय (प्रथमा तत्पुरुष) में ऐसा सम्बन्ध नहीं होता है, अपितु दोनों पर एक ही वस्तु को कहते हैं (जैसे--कृष्णः सर्पः - Yष्णसर्पः); अतएष कर्मधारय समास की क्रिया समास के दोनों पदों को धारण कर सकती है। जैसे--कृष्णसर्पः अपसर्पति' इस वाक्य में सर्प जब संचलन किया करता है तब कृष्णस्य भी उसके साथ रहता है; परन्तु 'राशः पुरुषः अपसपंति' में राजा पुरुष के साथ नहीं रहता है। मतएव प्रथमा तत्पुरुष (समानाधिकरण तत्पुरुष) को कर्मधारय के नाम से पृथक बतलाया जाता है। कर्मधारय समास प्रायः तीन परिस्थितियों में होता है (क) प्रथम पद वितीय पद का विशेषण हो और द्वितीय पद विशेष्य संज्ञा पद / (ब) दोनों पद संज्ञा हों। (ग) दोनों पद विशेषण हों जो समय पड़ने पर संयुक्त होकर किसी तीसरे पद के विशेषण हों। कर्मधारय समास के प्रमुख तीन प्रकार - (1) विशेषणपूर्वपद कर्मधारय, (2) उपमित कर्मधारय ( इसके दो प्रकार हैं-उपमानपूर्वपद और उपमानोत्तरपद ) और (3.) विशेषणोभयपद कर्मधारय / (क)विशेषणपूर्वपद कर्मधारय-(विशेषण + विशेष्य)-इसमें पूर्वपद विशेपण और उत्तरपद विशेष्य होता है (विशेषणं विशेष्येण बहुलम् ) / दोनों पदों मैंसमान विभक्ति तथा प्रायः समान लिङ्ग और वचन होते हैं / जैसे-नीलम् उत्पलम् - नीलोत्पलम् (नीला कमल); कृष्णःसर्पः = मुष्णसर्पः (काला साप); दीर्घ नयनम् - दीर्घनयनम् (विशाल नेत्र); पीतम् अम्बरम् = पीताम्बरम् (पीला कपड़ा); पीतः पटः-पीतपटः (पीला कपड़ा; इसका बहुव्रीहि समास भी हो सकता है। जैसे-पीतः पटः यस्य सः = पीतपटः = पीले कपड़े वाला); महान् राजा अथवा महान् च असो राजा च महाराजः (बड़ा राजा; यहाँ 'राजन् में समासान्त अ = 'टच्' प्रत्यय जुड़ने तथा महत् को आकार अन्तादेश होने से 'महाराजः' होगा। इसी प्रकार-परमश्च असी राजा च = परमराजः = श्रेष्ठ राजा; महत् यशः- महायशः; महती नदी - महानदी; महावीर; महायुद्धम्; महाभारतम्)। (ख) उपमित समास-इसमें उपमेय-उपमान-भाव प्रकट होता है। इसके दो प्रकार हैं (1) उपमान पूर्वपद ‘कर्मधारय (उपमानानि सामान्यवचन: - उपमान + साधारण धर्म)-इसमें पूर्वपद उपमान (जिससे उपमा दी जाती है) होता है और उत्तरपद साधारणधर्म (उपमेय और उपमान में रहने वाला साधारण गुण)। जैसे-समुद्र इव गम्भीरः = समुद्रगम्भीरः (समुद्र के समान गम्भीर; यहाँ समुद्र उपमान है और 'गाम्भीर्य' सामान्य गुण); पन इव श्यामः घनश्यामः (मेघ के समान काले वर्ण वाला); मृग इव चपला = मृगचपला (हिरण के समान चञ्चल); विद्युदिव पचला = विधुच्चञ्चला (बिजली के समान पञ्चल); चन्द्र इव आलादक:- चन्द्रालादकः (चन्द्रमा के समान आझादक)। (2) उपमानोत्तरपद कर्मधारय (उपमितं व्याघ्रादिभिः सामान्याप्रयोगे - उपमेय+ उपमान)-इसमें पूर्वपद उपमेय (जिसकी उपमा दी जाती है) होता है और उत्तरपद उपमान / इसमें सामान्य धर्म का प्रयोग नहीं रहता है। जैसे-पुरुषो व्याघ्र इव = पुरुषव्याघ्रः (पुरुष ध्यान के समान है); मुखं कमलम् एवम मुखकमलम् (मुख कमल के समान है); मरः सिंह व नरसिंहः ( मनुष्य मिह सदृश है)। 'पुरुषव्याघ्रः आदि का अन्य प्रकार से भी विग्रह होता है / जैसे-पुरुष एवं व्याघ्रः - पुरुषव्याघ्रः (पुरुष ही व्याघ्र है); मुखम् एव कमलम् % मुखकमल ( मुख ही कमल है)। यहाँ उपमेय और उपमान में तादात्म्य (अभेद) होने से रूपक 'कर्मधारय' होगा। विशेष-उपमान पूर्वपद के विग्रह में 'इव' शब्द दोनों पदों के मध्य में और उपमानोत्तरपद के विग्रह में दोनों पदों के बाद में आता है। (ग) विशेषणोभयपद कर्मधारय (विशेषण + विशेषण)-दो समानाधिकरण विशेषणों के समास को विशेषणोभयपद कर्मधारय समास कहते हैं (विग्रह में 'च'

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150