________________ 4] संस्कृत-प्रवेशिका [8 : समास 'कर्मधारय' और 'द्विगु' को तत्पुरुष से पृथक् बतलाया जाता है तो समास के छ: भेद माने जाते हैं समास अव्ययीभाव(१) तत्पुरुष द्वन्द्व (5) बहुव्रीहि (6) व्यधिकरण तत्पुरुष (2) समानाधिकरण तत्पुरुष (प्रथमा तत्पुरुष) (द्वितीयादि तत्पुरुष या सामान्य तत्पुरुष) कर्मधारय (6) द्विगु (4) (सामान्य प्रथमा तत्पुरुष या विशेषण-विशेष्य- (संख्या पूर्व प्रथमा . भाव तत्पुरुष) तत्पुरुष) अव्ययीभाव समास (Adverbial or Indeclinable Compound) अव्ययीभाव शब्द का अर्थ--जो अव्यय नहीं था उसका अव्यय बन जाना। इस समास में प्रथम पद 'अव्यय' होता है और दूसरा पद 'संज्ञा' / इसमें प्रायः पूर्व पदार्थ का(अव्यय का) प्राधान्य होता है अतएव समास होने पर समस्त पद अव्यय हो जाता है और तब उसका रूप नहीं बदलता अंतिम पद का आकार मपुंसकलिङ्ग के देश रूप अन्य-पदार्थ का प्राधान्य है / (ख) 'पञ्चानां तन्त्राणां समाहारः' (पाँच तन्त्रों का समाहार) इस समाहार अर्थ वाले तत्पुरुष में समाहार अन्य पद का अर्थ है, उत्तरपद का नहीं। (ग) 'द्वित्राः' (दो या तीन ) यह उभय-पदार्थ प्रधान होने पर भी बहुव्रीहि है। (घ) संज्ञा च परिभाषा -संज्ञापरिभाषम् (संशा और परिभाषा का समूह) इस समाहार द्वन्द्व में समाहार अर्थ के अन्य पदार्थ होने पर भी द्वन्द्र कहलाता है। 1. अधोलिखित द्वयर्थक सूक्ति में छहों समासों के नाम गिनाये गये हैं द्वन्द्वोऽस्मि हिगुरहं गृहे च मे सततभव्ययीभावः / तत्पुरुष कर्मधारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः / / अर्थः-कोई पुरुष किसी से काम करने के लिए कह रहा है-हे पुरुष ! मैं द्वन्द्व (पति-पत्नी)हूँ। द्विगु (दो गायों अथवा बैलों वाला)हूँ। मेरे घर में सदा अव्ययीभाव (खर्च नहीं के बराबर) है। तुम वह काम (कर्म) करो जिससे मैं बहुव्रीहि (बहुत धान्य वाला) हो जाऊँ। अध्ययीभाव] 1. व्याकरण [85 एकवचन जैसा होता है। जैसे-हरी इति = अधिहरि (हरि में; यहाँ पूर्व पद 'अधि' का अर्थ 'मैं' प्रधान है), गङ्गायाः समीपम्-उपगङ्गम् (गङ्गा के समीप ); कामम् अनतिक्रम्यभ्यथाकामम् (इच्छानुसार)। अव्ययीभाव समास बनाते समय स्मरणीय नियम--- (1) यदि संज्ञा शब्द का अन्तिम वर्ण दीर्घ होता है तो उसे 'ह्रस्व कर दिया जाता है।ऐ, ए, ई> भो, ओ,ऊ>उ | आ> ]-गङ्गायाः समीपे = उपगङ्गम् ( उप + गङ्गा); नद्याः समीपे - उपनदि (उप + नदी); कवाः समीपे - उपवधु ( उप + वधू); गोः समीपे-उपगु (उप+ गो); मायः समीपे- उपनु (उप +नी)। (2) अनन्त ( अनु में मात होने वाली) और स्त्री० संज्ञाओं का'' नित्य हटा दिया जाता है परन्तु अनन्त नपुं० संज्ञाओं का'न' विकल्प से हटाया जाता है। जैसे-राज्ञः समीपेचपराजम् (उप+राजन् ); सीम्नः समीपेशउपसीमम् ( उप + सीमन् ); चर्मणः समीपे - उपचर्मम् उपचर्म वा (उप + 'धर्मन्)। (3) यदि अव्ययीभाव समास के अन्त में झम् (वर्ग का 1, 2, 3, 4) वर्ण आता है तो विकल्प से समासान्त 'अ' (टच् ) प्रत्यय जुड़ता है। जैसे-सरितः समीपे = उपसरितम् (उप+ सरित् +अ) उपसरित वा / उपसमिधम् उपसमित् वा ( समिधा के समीप)। (4) शरद्, विपाश्, बनस्, मनस्, उपानह, बनदुह, दिव, हिमवत, दिश, दृश्, विश्, चेतस्, चतुर, तद्, यद्, कियत् और जरस् इनमें 'अ' (टच्) अवश्य जुड़ता है। जैसे-रायाः समीपम् = उपजरसम् (बुढ़ापे के निकट ); उपशरयम् (शरदः समीपम् = शरद के समीप ); अधिर्मनसम्; उपदिशम् / (5) नदी, पौर्णमासी, आग्रहायणी और गिरि शब्द के अन्त में आने पर विकल्प से 'अ' (टच्) प्रत्यय जुड़ता है / जैसे-उपगिरम् उपगिरि वा; उपनदम् उपनदि वा। अव्ययीभाव समास प्रायः निम्न 16 अर्थों में होता है 1. विभक्ति ( सप्तमी)-अधिहरि (अधि हरौ इति= हरि के विषय में); मध्यात्मम् (आत्मनि अधि- आत्मा के विषय में); अधिगोपम् / 2. समीपउपगङ्गम् (गङ्गायाः समीपम् = गङ्गा के पास); उपराजम् (राज्ञः समीपम् 3D राजा के पास); उपकृष्णम् / 3. समृद्धि सुमद्रम् (मद्राणां समृद्धिःम्मद देश की समृद्धि)। 4. व्यद्धि (विनाश, दरिद्रता)-दुर्यवनम् (पवनानां प्यूद्धिः- यवनों का विनाश ) / 5. अभाव-निमक्षिकम् (मक्षिकाणाम् अभावः- मक्खिकों का भभाव); निर्जनम् / 6. अत्यय (नाश, समाप्ति)-अतिहिमम् (हिमस्य अत्ययः