Book Title: Sanskrit Praveshika
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Tara Book Agency

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Page 32
________________ 5.] संस्कृत-प्रवेशिका [4: तद्धित-प्रत्यय ' (कन्यायाः अपत्यं पुमान् व्यासः कर्णश्च / / नोट-प्रायः 'इन्' से अतिरिक्त स्थलों में 'अण्' प्रत्यय होता है। ( निम्न स्थलों में 'ढ' (एय) प्रत्यय होता है 1. स्त्रीलिङ्ग (स्त्री-प्रत्ययान्त ) प्रातिपदिक शब्दों से [ कुछ को छोड़कर ]" जैसे-कुन्ति + ढक्-कौन्तेयाः (युधिष्ठिर आदि / एकवचन में 'कौन्तेयः' होगा)। माद्री माद्रेयौ ( माद्री के पुत्र नकुल और सहदेव / एकवचन में 'माद्रेयः' होगा)। राधा राधेयः ( कर्ण), द्रौपदी>द्रौपदेयः, गङ्गा>गाङ्गेयः, विनता>वैनतेयः (गण्ड़, भगिनी भामिनेयः (भगिन्या अपत्यं पुमान् भानजा), ताडका> ताडकेयः, सरमा सारमेयः, रोहिणी रोहिणेयः / 2 शुभ्र आदि से / जैसे-शौभ्रेयः (शुभ्रस्यापत्यम् पुमान्), अत्रि >आत्रेयः, शकुनि >णाकुनेयः, इतर>ऐतरेयः, मृकण्ड>मार्कण्डेयः, पाण्डु>ण्डवेयः / 3. अन्य उदाहरण-मण्डूक>माण्डूकेयः, प्रवाहण>प्रावाहणेयः प्रवाहणेयः वा, कल्याणी>काल्याणिनेयः, बन्धकी>बान्धकिनेयः, कुलटाकोलटेयः कोलटिनेयः वा, सुभगा>सौभागिनेयः / 'इ' 'अण्' और ढक्' प्रत्यय जोड़ते समय स्मरणीय नियम' (1) णित्, कित एवं मित् होने से शब्द के आदि स्वर को वृद्धि (अ>आ। ईऐ उऊ>औ। ऋ आर)। (2) शब्द का अन्तिम स्वर यदि अ, आ, इ, ई हो तो उसका लोप और यदि उ, ऊ, ओ, औ हो तो गुण और अवादेश। (2) तुलनार्थक - अतिशयार्थक ( Degree)-तरप्, तमप, ईयसुन्, इष्ठन् जब दो कि तुलना (Comparative degree ) में किसी एक का उत्कर्ष अथवा अपकर्ष बतलाया जाता है तो विशेषण में 'तरम्' ( तर ) और 'ईयसुन्' ( ईयस् ) प्रत्यय होते हैं / जब दो से अधिक की तुलना ( Superlative degree) की जाती है तो 'तमप्' (तम) और 'इष्ठन्' (इष्ठ ) प्रत्यय होते हैं। सरप और तमप् प्रत्यय सभी विशेषणों में तथा ईयसुन् और इण्ठन् केवल गुणवाची विशेषणों में जुड़ते है। नोट-दो कि तुलना में जिससे विशेषता बतलाई जाती है, उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है / जैसे- गणेशः श्यामात् पटुतरः (अयमनयोरतिशयेन पटुः पटुतरः) 1. 'अण्' और 'क्' प्रत्ययान्त शब्दों के रूप में पुं० में 'राम' और स्त्री० में ('6' जोड़कर ) 'नदी' की तरह चलेंगे। 'इन्' प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुं० में 'हरि' ' और स्त्री० में 'नदी' की तरह चलेंगे। 1. श्रीभ्यो ढक् / अ० 4.1.120 / 2. सुनादिभ्यश्चम० 4.1.123 / 3. अतिशायने तमविष्टनी। द्विवचनविभव्योपपदे तरधीयसुनी / 05.3.55.57. 4. अजादी गुगवचनादेव / अ०१.३.१८. तरप्, तमम् ] 1: व्याकरण [ 51 पटीयान् वा। दो से अधिक की तुलना में पड़ी या सप्तमी विभक्ति होती है। 'जैसे-कवीनां कविषु वा कालिदासः पटुतमः (अयमेषामतिशयेन पटुः) पटिष्ठो वा। (क) 'तरप्' और 'तमप्' प्रत्ययान्त रूप-इनके रूप पुं० में, 'राम', स्त्री० में 'लता' और नपुं० में 'ज्ञान' की तरह चलेंगे। जैसे-पटु+तरप् (तर)-पटुतर> पटुतरः (पु.), पटुतरा ( स्त्री०), पटुतरम् (नपुं०)। पटु + तमप् (तम)पटुतमः (पुं०), पटुतमा ( स्त्री०), पटुतमम् ( गपुं०)। अन्य उदाहरण (क्रमशः) पुं० में-लघु>लघुतरः, लघुतमः / चतुर> चतुरतरः, चतुरतमः / मृदु>मृदुतरः, मृदुतमः / गुरु >गुरुतरः, गुरुतमः / प्रिय> प्रियतरः, प्रियतमः (स्त्री० प्रियतमा)। दृढ>दृढतरः, दृढतमः / कृश>शतरः, कृशतमः / शुक्ल>शुक्लतरः, शुक्ल तमः / बृहद>बृहत्तरः, बृहत्तमः / महव> महत्तरः, महत्तमः / विद्वस् >विद्वत्तरः, विद्वत्तमः / धनवत् > धनवत्तरः, धनवत्तमः / प्राचीन>प्राचीनतरः, प्राचीनतमः / नवीन>नवीनतरः, नवीनतमः / (ख) 'ईयसुन्' और 'इष्ठन्' प्रत्ययान्त रूप-ईयसुन ( ईयस् ) प्रत्ययान्त पशब्दों के रूप पुं० में 'श्रेयस्', स्त्री० में नदी' और नपुं० में 'मनस्' की तरह चलेंगे। इष्ठन् ( इण्ठ ) प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुं० में 'राम'; स्त्री० में 'लता' और नपुं० में 'ज्ञान' की तरह चलेंगे। जैसे-पटु + ईयसुन् (ईयर )-पटीयस्> पटीयान् (पुं०), पटीयसी (स्त्री)। पटु + इष्ठन् ( इष्ठ )-पटिष्ठ> पटिष्ठः (पुं०), पटिष्ठा (स्त्री) पटिष्ठा (नपुं०)। अन्य उदाहरण (क्रमशः) पुं० में-लघु ( लघु )> लघीयान्, लधिष्ठः / गृदु ( प्र )> नदीयान्, अदिष्ठः- गुरु (गर् )>गरीयान्, गरिष्ठः / दृढ (ढ) >दीवान्, इदिष्ठः / कृश (क्रह:>शीवान्, ऋशिष्ठः / उरु ( ब )> परीयान्, वरिष्ठः / प्रशस्य (श्र>धेयान्, श्रेष्ठः / प्रशस्य (ज्य >ज्यायान (यसुन् की '6' को 'आ' हुआ), ज्येष्ठः / युवन् ( कन् )>कनीयान्, कनिष्ठः / गान ( यव् )>पवीयान्, यविष्ठः / प्रिय (प्र)>प्रेयान् ( स्त्री प्रेयसी), प्रेष्ठः / दी (द्रा )>दापीयान्, द्राषिष्ठः / बलिन् (बल् )>वलीयान्, बलिष्ठः / समर ( स्थ)>स्थेयान, स्येष्ठः / वाढ ( साधू )>साधीयान्, साधिष्ठः / स्थूल (प )>पीयान्, स्थविष्ठः / महत (मह)>महीयान्; महिष्ठः / बहु (भू) 1- भुवान् (प्रत्यय के 'ई' का लोप), भूयिष्ठः (प्रत्यय के '' का लोप तथा 'यि' भागम) / वृद्ध (ज्य)>ज्यायान् (ईयसुन् के '6' को 'आ'), ज्येष्ठः / वृक्ष (वर्ष)> मामिान्. वषिष्ठः / दूर (द )>दवीयान्, दविष्ठः / अन्तिक ( नेद् )>नेदीयान्, गादतः / शुद्र (क्षोद )>क्षोदीवान्, शोदिष्ठः / हस्व (हस् )>हसीयान्, मिठ: / क्षिप्र (क्षेप )>क्षेपीयान्, क्षेपिष्ठः / गगुन्' और 'इछउन्' प्रत्यय-जोड़ते समय स्मरणीय नियम

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