________________ - संस्कृत-प्रवेशिका [3: कृत्-प्रत्यय इस् द्रष्टव्यम, दर्शनीयम् द्रष्टव्यः, दर्शनीयः द्रष्टव्या, दर्शनीया भी नेतव्यम्, नयनीयम् नेतव्यः, नयनीयः नेतन्या, नयनीया वादातव्यम्, दानीयम् दातव्यः, दानीयः / दातव्या, दानीया पुच भोक्तव्यम् भोजनीयम् भोक्तव्यः, भोजनीयः भोक्तव्या, भोजनीया र असव्यम्, अदनीयम् अत्तव्यः, अदनीयः अत्तव्या अदनीया पा पक्तव्यम्, पचनीयम् पक्तव्यः, पचनीयः पक्तव्या, पचनीया कम् कथयितव्यम् कथनीयम् कथगितव्यः, कथनीयः कथयितव्या, कथनीया (घ) ये प्रत्यय कर्मवाच्य और भाववाच्य में ही होते हैं। कर्तृवाच्य में इस अर्थ में विधिलिङ् का प्रयोग होता है। कर्मवाच्य में इनका लिङ्ग आदि कर्म के मनुसार और भाववाच्य में न एकवचन में होता है। जैसे-मया पुस्तक बठितव्यम् / (ङ) कुछ शब्द कर्तृवाच्य में भी होते हैं। जैसे-भव्योऽयं अव्यमनेन वा / भू+ यत्-भव्यः (होनेवाला) / गै+ यत्-गेयः (गाने वाला)। अवच्+अनीयर् -प्रवचनीयः (व्याख्यान करनेवाला), उप + स्था+अनीयर - उपस्थानीयः (निकट खड़ा होने वाला), जन् + यत् - जन्यः ( पैदा करने बाला), आप्लु+प्पत् प्राप्लब्पः (तैरने वाला ), आपत् + ण्यत् आपात्यः / (च) ण्यत् (य) प्रत्यय जोड़ते समय स्मरणीय नियम-(१) ऋवर्णान्त तथा हलन्त धातुओं से 'ध्यत्' होता है। जैसे-+ ण्यत् - कार्यम् (नपुं०), कार्यः (पु.), कार्या (स्त्री०)। मृज् + ण्यत् - मार्यः ( पवित्र करने योग्य / 'भृजेवृद्धि' / अ० 7. 2. 114 मूत्र से वृद्धि)। हहार्यम् / स्मृ> स्मार्यम् / प > पाठयम् / (2) धातु के अन्तिम स्वर को वृद्धि / यदि उपधा में अकार हो तो उसकी वृद्धि (आ), अन्य स्वर हो तो प्रायः गुण / मृज् के उपधा के ऋ को भी वृद्धि होगी। जैसे-मृज् >मायः / कृ>कार्यम् / वह> बाह्यम् / हन् > घात्यम् / ह< हार्यम् / धृ>धार्यम् / (3) चकार और जकार को कुत्व (च>रु, ज>) होता है। जैसे-मृज >मायः / भुज> भोग्य भोग करने योग्य)। वच्>वाक्य (पदसमूह)। अपवाद-यज्>याज्य / यज्ञ में देने योग्य, पूज्य ), रुच> रोच्य / याच्>पाच्य / भुज् > भोज्य (खाने योग्य ) / वच्> वाच्य (कहने योग्य) / ऋच्> अर्घ्य / त्य>त्याज्य / (4) उकारान्त एवं ऊकारान्त धातुओं में भी यत्' जुड़ता है यदि. आवश्यकता का अर्थबोध कराना हो। जैसे->श्राव्य (अवश्य सुनने के योग्य ) / पू>पाव्य / (छ: क्यप् प्रत्यय-इण, स्तु, शास्, वृ, दृ और जुष् चातुओं में [ तथा मृज् में विकल्प से ] क्या होता है। जैसे-इण्> इत्यः, स्तु>स्तुत्यः / मृज़>मृज्यः / शास्>शिष्यः / वृ>वृत्यः / आ+> मादृत्यः / जुष्> जुष्यः / तव्यत्, अनीयर, यत् ] 1: व्याकरण [ 41 चुर् चोरयितव्यम्, चोरणीयम् चोरयितव्यः, चोरणीयः चोरयितव्या, पोरणीया चित् चिन्तयितव्यम्, चिन्तनीयम् चिन्तयितेव्यः, चिन्तनीयः चिन्तयितव्या चिन्तनीया एधू . एधितव्यम्, एधनीयम् - - - भ्रम् भ्रमितव्यम्, भ्रमणीयम् भ्रमितव्यः, भ्रमणीयः भ्रमितव्या, भ्रमणीया 'तव्यत्' प्रत्यय जोड़ते समय स्मरणीय नियम 1. धातु के अन्तिम और उपधा के स्वर (इ, उ, ऋ) को गुण होता है। जैसे-कृ> कर्तव्यम्। हहर्तव्यम्; लिख> लेखितव्यम् रुद>रोदितव्यम्; दुहु> दोग्धव्यम् / 2. धातु के अन्तिम च् ज् > क् में, द> में; भ>ब् में; ध्>द में और म् > में बदल जाते है। जैसे-लम् > लब्धव्यम्। वच्> वक्तव्यम्; युध > योद्धव्यम्, गम्>गन्तव्यम्, नम्>नन्तव्यम् / 3. धातु के अंतिम 'ए', 'ऐ' को 'आ' हो जाता है। जैसे->षातव्यम् / 4. सेट् धातुओं के बीच में 'इ' जुड़ता है। जैसे-भू> भवितव्यम् / 'अनीयर' प्रत्यय जोड़ते समय स्मरणीय नियम 1. धातु के अन्तिम और उपधा के स्वर को गुण होता है। जैसे-लिख> लेखनीयम्, इ>अयनीयम्, स्तु>स्तवनीयम्, स्मृ>स्मरणीयम् / 2. धातु के अन्तिम 'ए' और 'ऐ' को 'आ' हो जाता है / जैसे-गै>गानीयम्, >त्राणीयम् / (ख) यत् प्रत्ययान्त रूप 'यत्' (य) प्रत्यय प्रायः स्वरान्त धातुओं में तथा पवर्गान्त धातुओं में [ साथ ही उनकी उपधा में 'अ' हो ] जुड़ता है। जैसे-दा+यत् - देयम् (नपुं०), देयः (पुं०), देया (स्त्री०)। गम् >गम्यम् / नम्>नम्यम्, जप्>जप्यम् / शप> शप्यम् / लप्>लप्यम् / लन्>लभ्यम्, रम् रम्यम् / 'यत्' प्रत्यय जोड़ते समय स्मरणीय नियम .. 1. धातु के अन्तिम 'आ, इ, ई, ओ, औ, ए, ऐ' स्वरों के स्थान पर 'ए' (इ>ए) होता है। जैसे-पा+ यत् - पेयम् / हा>हेयम् / ग्ल> ग्लेयम् (ग्लानि करना चाहिए)। चि>चेयम् ( चयन करना चाहिए)। स्था>स्थेयम् / दा> देयम् / धा>धेयम् / मा> मेयम् / ग>गेपम् / छो>छेयम् / नी> नेयम् / 1. अचो यत् / पोरदुपधात् / अ०३. 1.67-68. 2. ईद्यति (अ०६. 4. ६५)-'यत्' प्रत्यय के पर में होने पर 'आ' को 'इ' होता है, पश्चात् 'इ' को 'ए' गुण होता है। इसी प्रकार ऐ आदि के विषय में भी जानना चाहिए।