Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-6 ]
* सम्यग्दर्शनसहित जीव विशेष ज्ञान-व्रतादि बिना भी इन्द्रतीर्थङ्कर इत्यादि विभूति को पाता है ।
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* ज्ञान-चारित्रादि का मूल भगवान ने सम्यग्दर्शन को कहा है, उसके बिना ज्ञान और चारित्र, वह अज्ञान और कुचारित्र है; इसलिए मोक्ष के लिए निरर्थक है ।
* व्रत-चारित्ररहित तथा विशेष ज्ञानरहित अकेला सम्यक्त्व भी अच्छा है-प्रशंसनीय है, परन्तु मिथ्यात्वरूपी जहर से बिगड़े हुए व्रत - ज्ञानादि, वे अच्छे नहीं हैं ।
* सम्यक्त्वरहित जीव वास्तव में पशु समान है; जन्मान्ध की तरह वह धर्म-अधर्म को नहीं जानता है।
• दुःखों से भरपूर नरक में भी सम्यक्त्वसहित जीव शोभता है; उससे रहित जीव, देवलोक में भी शोभता नहीं है, क्योंकि वह नरक का जीव तो सारभूत सम्यक्त्व के माहात्म्य के कारण वहाँ से निकलकर लोकालोक प्रकाशक तीर्थनाथ होगा और मिथ्यात्व के कारण भोग में तन्मय उस देव का जीव, आर्तध्यान से मरकर स्थावरयोनि में जायेगा ।
* तीन काल और तीन लोक में सम्यक्त्व के समान धर्म दूसरा कोई नहीं; जगत में वह जीव को परमहितकर है।
* सम्यक्त्व के अतिरिक्त दूसरा जीव का कोई मित्र नहीं है, दूसरा कोई धर्म नहीं है, दूसरा कोई सार नहीं है, दूसरा कोई हित नहीं है, दूसरा कोई पिता-माता आदि स्वजन नहीं और दूसरा कोई सुख नहीं । मित्र-धर्म-सार-हित- स्वजन - सुख, यह सब सम्यक्त्व में समाहित है।
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.