Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग -6 ]
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सम्यग्दृष्टि का समस्त ज्ञान सम्यक् है ( वह मोक्षमार्गरूप निज प्रयोजन को साधता है )
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आत्म-अनुभवी सम्यग्दृष्टि जो कुछ जानता है, वह सर्व जानना सम्यग्ज्ञानरूप है। जहाँ शुद्धात्मश्रद्धानरूप निश्चयसम्यक्त्व हुआ, वहाँ सब ज्ञान भी स्व- पर की भिन्नता को यथार्थ साधता हुआ सम्यक्रूप परिणमित हुआ; इसलिए ज्ञानी का समस्त ज्ञान सम्यग्ज्ञान हुआ। कदाचित् क्षयोपशम - दोष से बाहर के अप्रयोजनभूत कोई पदार्थ (घट - पट, डोरी इत्यादि) अयथार्थ ज्ञात हो जायें, तथापि उससे मोक्षमार्गरूप प्रयोजन साधने में कोई विपरीतता उसे नहीं होती, क्योंकि अन्दर की प्रयोजनरूप वस्तु जानने में उसे कोई विपरीतता नहीं होती । अन्दर में राग को ज्ञानरूप जाने या शुभराग को मोक्षमार्गरूप जाने - ऐसी प्रयोजनभूत तत्त्वों में विपरीतता ज्ञानी को नहीं होती; प्रयोजनभूत तत्त्व - स्वभाव - - विभाव की भिन्नता, स्व- पर की भिन्नता - इत्यादि को तो उसका ज्ञान यथार्थ ही साधता है, उसका समस्त ज्ञान सम्यग्ज्ञान ही है; और अज्ञानी कदाचित् डोरी को डोरी, सर्प को सर्प, डॉक्टरपना, वकालात, ज्योतिष इत्यादि अप्रयोजनरूप तत्त्वों को जाने, तथापि स्वप्रयोजन को उसका ज्ञान नहीं साधता होने से उसका समस्त जानपना मिथ्या है, स्व-पर की भिन्नता और कारण -कार्य इत्यादि में उसकी भूल होती है ।
अहा! यहाँ तो कहते हैं कि जो ज्ञान, मोक्षमार्ग को साधने में काम आवे, उसमें विपरीतता नहीं होती, वही सम्यग्ज्ञान है और भले बाहर का चाहे जितना जानपना हो परन्तु मोक्षमार्ग को साधने
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