Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 191
________________ www.vitragvani.com 176] [सम्यग्दर्शन : भाग-6 DecacebN आत्मसन्मुख जीव र [सम्यक्त्व-जीवन लेखमाला : लेखांक 14 ] दुःख से थका हुआ और अन्दर से पुकार करता जिज्ञासु जीव, अतीन्द्रिय आनन्द का तीव्र वांछक बना है। उसे संसार की कलबलाहट छोड़कर अन्तर में आत्मप्राप्ति का एक ही ध्येय है। दुनिया के कोलाहल से थकित उसका चित्त आत्मशान्ति समीप में देखकर उस ओर एकदम उल्लसित होता है। जैसे माता के लिये तरसता बालक माता को देखते ही आनन्द से उल्लसित होता है और दौड़कर उससे लिपट पड़ता है। इसी प्रकार आत्मा के लिये तरसता मुमुक्षु का चित्त, आत्मा को देखकर आनन्द से उल्लसित होता है और शीघ्र अन्दर में जाकर उसका साक्षात्कार करता है। वह मुमुक्षु दूसरे ज्ञानियों की अनुभूति की बात परम प्रीति से सुनता है : अहो, ऐसी अद्भुत अनुभूति!ऐसे परम उत्साह से वह अपने स्वकार्य को साधता है। अनादि से चार गति में भ्रमण करना जीव, मोह से-कषाय से दुःखी हो रहा है; दुःख में भ्रमण करते-करते उसे थकान लगी और उसकी विश्राम की-शान्ति की झंखना पैदा हुई; वह सुख-शान्ति की खोज करने लगा। वहाँ महान पुण्ययोग से उसे सच्चे देव-गुरु की भेंट हुई। गुरु के चरणों में सर्वस्व अर्पण किया, उनकी आज्ञा शिरोमान्य की; और आत्मा के हित की जिज्ञासा से गुरु से सविनय प्रश्न किया—'हे प्रभो! मेरे आत्मा को शान्ति कैसे हो? पुण्य-पाप करके चारों गति में भ्रमण करते करते मैं थक गया, फिर भी मुझे कहीं भी शान्ति न मिली; तो वह शान्ति कहाँ छिपी हुई है ?-यह मुझे बताईये, क्योंकि आपका आत्मा शान्ति को प्राप्त हुआ है, अत: Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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