Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 196
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-6] [181 सम्यक्त्व का अपूर्व क्षण -[सम्यक्त्वजीवन : लेखांक 15 ]-और इसके पश्चात् एक ऐसा क्षण आती है कि आत्मा कषायों से छूटकर चैतन्य के परम गम्भीर शान्तरस में मग्न हो जाता है... अपना अत्यन्त सुन्दर महान अस्तित्व पूरा का पूरा स्वसंवेदनपूर्वक प्रतीत में आ जाता है। -बस, यही है सम्यग्दर्शन ! यही है मङ्गल चैतन्य प्रभात ! और यही है भगवान महावीर का मार्ग! - ___ अहा, इस अपूर्वदशा का क्या कहना? प्रिय साधर्मीजन ! आनन्द से आओ प्रभु के मार्ग में! अज्ञानतिमिसिंधानां ज्ञानांजलशलाकया। चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नमः॥ यह जीव, संसार में अनादि काल से भटका है, वह मात्र एक आत्मा के ज्ञान बिना। जीव ने अनेक बार पुण्य-पाप के परिणाम किये हैं, उसमें कुछ आश्चर्य या विस्मय की बात नहीं और इन पुण्य-पाप की बात भी उसे बार-बार सुनने को मिलती है; इसलिए उसका कोई महत्त्व नहीं है, उसमें कुछ हित नहीं है। अब किसी महान पुण्योदय से जीव को अपने शुद्धस्वरूप की, अर्थात् पाप-पुण्य से पार चैतन्यस्वरूप की बात सुनने को मिली। ज्ञानी-गुरु के पास से आत्मा का स्वरूप सुनते ही अपूर्वभाव जागृत हुआ कि अहो! ऐसा मेरा स्वरूप है! ऐसा महान सुख -शान्ति-आनन्द-प्रभुता तथा चैतन्य भण्डार स्वयं मुझमें ही भरा पड़ा है। ऐसा जानकर उसे महान आश्चर्य होता है, आत्मा का अपूर्व प्रेम जागृत होता है और ऐसा सुन्दर अद्भुत स्वरूप बतानेवाले देव-गुरु का वह अपार उपकार मानता है। उसको आत्मा की धुन Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

Loading...

Page Navigation
1 ... 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203