Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-6
जिज्ञासु का प्रथम कर्तव्य
आत्मतत्त्व का निर्णय DIR [सम्यक्त्व जीवन लेखमाला, लेखांक : 11] RSSN
आत्मिकसुख कहो या सम्यग्दर्शन कहो, जीव को वह इष्ट है। सुख जिसमें भरा है-ऐसे अपने ज्ञानस्वरूप का सच्चा निर्णय ज्ञान के द्वारा करना, यही सम्यक्त्व की रीति है। जिसने ऐसा निर्णय किया, वह पात्र हुआ और उसे अन्तर में आत्म-अनुभव होगा ही होगा।*
अहो, वीतरागी सन्तों ने आत्महित का जो वीतरागी सत्य मार्ग दिखलाया, उस मार्ग पर चलनेवाले धर्मात्माओं की विचारधारा तथा रहन-सहन तो कोई अलौकिक अद्भुत होता है; और जहाँ उस मार्ग को पाने की सच्ची जिज्ञासा जागृत होती है, वहाँ भी जीव के भावों में कोई आश्चर्यकारी परिवर्तन होने लगता है, और मुमुक्षु जीवन में उसे नये-नये भावों का वेदन होता है।
* सम्यक्त्व के जिज्ञासु को पहले यह प्रश्न होता है कि सम्यग्दर्शन क्या चीज है?
अपने शुद्धात्मस्वरूप की अनुभवसहित प्रतीति, वह सम्यग्दर्शन
है।
_*फिर तुरन्त प्रश्न यह होता है कि ऐसे सम्यग्दर्शन की प्राप्ति कैसे हो?
प्रथम तो जिस जीव के अन्तर में आत्मा की सच्ची मुमुक्षुता होती है, वह ज्ञानी के सङ्ग से ज्ञानानन्दस्वरूप आत्मा की अगाध * यह अंश आत्मधर्म से लिया है।
सम्पादक
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.