Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 183
________________ www.vitragvani.com 168] [सम्यग्दर्शन : भाग-6 - सम्यग्दर्शन होने पर क्या होता है ? - सम्यग्दर्शन होते ही आत्मा के स्वरस की अपूर्व शान्ति अनुभव में आती है। कषायरहित शान्ति में उपयोग लीन होकर आत्मा का सहज आनन्द प्रगट होता है। अनादि से भवदुःख की जो भयङ्कर अशान्ति थी, वह मिट जाती है और अपूर्व शान्तिमय चैतन्य-जीवन का प्रारम्भ होता है। अन्तर में आत्मा अपने स्वरूप की कोई परम तृप्ति के सुख का वेदन करता है। मेरा सुख मेरे ही अन्तर में भरा पड़ा है-इस प्रकार उसे अतीन्द्रियसुख के अनुभव -सहित प्रतीति होती है। सम्यग्दृष्टि जीव के परिणाम में कोई अचिन्त्य अपूर्व गाम्भीर्य होती है। उसकी गहराई का नाप ऊपरी दृष्टि से नहीं हो सकता। ऐसा जो सम्यग्दर्शन है, वह अभेदरूप से आत्मा ही है। सम्यग्दर्शन और आत्मा दोनों अभिन्न हैं। आत्मा स्वयं सम्यग्दर्शनस्वरूप है । ऐसे सम्यग्दर्शन से ज्ञानस्वभावी आत्मा को अनुभव में लेने के बाद भी अशुभ या शुभ कषायभाव तो होते हैं, परन्तु आत्मशान्ति तो ज्ञानभाव में ही है-ऐसा निश्चय बना रहता है। ज्यों-ज्यों ज्ञानभावना बढ़ती जाती है, त्यों-त्यों शुभाशुभ कषायभाव भी नष्ट होते जाते हैं और शान्ति का वेदन बढ़ता जाता है। अन्तर में शान्तरस की ही मूर्ति आत्मा है, उसके लक्ष्य से जो वेदन होता है, वही सुख है और ऐसे सुख का वेदन सम्यग्दर्शन में है। एक अखण्ड प्रतिभासमय आत्मा का अनुभव, वही सम्यग्दर्शन है। - ऐसा अपूर्व शान्तिस्वरूप सम्यग्दर्शन जयवन्त हो। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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