Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग -6 ]
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स्वानुभूति का रंग चढ़ जाये - ऐसी बात
प्रत्यक्ष-परोक्षपना ज्ञान में है, सम्यक्त्व में नहीं
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प्रत्यक्ष-परोक्षपने सम्बन्धी भेद सम्यक्त्व में नहीं है । सम्यक्त्व तो शुद्ध आत्मा की प्रतीतिरूप है । वह प्रतीति, सिद्ध भगवान को या तिर्यञ्च सम्यग्दृष्टि को समान ही है। सिद्ध भगवान को सम्यक्त्व में जैसे शुद्धात्मा की प्रतीति है, वैसे ही शुद्धात्मा की प्रतीति चौथे गुणस्थानवाले समकिती को भी है । उसमें कोई अन्तर नहीं है । सिद्ध भगवान का सम्यक्त्व, प्रत्यक्ष और चौथे गुणस्थानवाले का परोक्षऐसा भेद नहीं है; अथवा स्वानुभव के समय सम्यक्त्व, प्रत्यक्ष और बाहर शुभाशुभ में उपयोग हो, तब सम्यक्त्व, परोक्ष - ऐसा भी नहीं है। शुभाशुभ में प्रवर्तता हो तब, या स्वानुभव से शुद्धोपयोग में प्रवर्तता हो तब भी, सम्यग्दृष्टि को सम्यक्त्व तो ऐसा का ऐसा है, अर्थात् शुभाशुभ के समय सम्यक्त्व में कोई मलिनता आ गयी और स्वानुभव के समय सम्यक्त्व में कोई निर्मलता बढ़ गयी - ऐसा नहीं है ।
अहो! देखो, यह सम्यग्दर्शन की और स्वानुभव की चर्चा ! यह मूलभूत वस्तु है । स्वानुभव क्या चीज़ है ? —इसकी पहिचान भी जीवों को आनन्दप्रदायक है । पहले वस्तुस्वरूप का यथार्थ निर्णय करे - जीव क्या, अजीव क्या, स्वभाव क्या, परभाव क्या ? — यह भलीभाँति पहिचान कर, फिर मति - श्रुतज्ञान को अन्तर में झुकाकर स्वद्रव्य में परिणाम को एकाग्र करने से सम्यग्दर्शन और स्वानुभव होता है। ऐसा अनुभव करे, तब ही मोह की गाँठ टूटती है और तब ही जीव, भगवान के मार्ग में आता है... अहा! उसे जो आनन्द और शान्ति होती है, उसकी क्या बात !
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.