Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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है, वह सुख उसे निरन्तर वर्तता है; तदुपरान्त यहाँ तो निर्विकल्पदशा में उसे आनन्द की जो विशेषता है, उसकी बात है।
शङ्का : हम तो गृहस्थ; गृहस्थ को ऐसी स्वानुभव की बात कैसे समझ में आये?
समाधान : भाई! स्वानुभव की यह चिट्ठी लिखनेवाले (पण्डित टोडरमलजी) स्वयं भी गृहस्थ ही थे और जिन्हें चिट्ठी लिखी है, वे भी गृहस्थ ही थे; इसलिए गृहस्थों को समझ में आ सके, ऐसी यह बात है। आत्मा का सत्य ज्ञान तो गृहस्थ को भी हो सकता है। मुनिराज जैसी स्वरूप स्थिरता गृहस्थ को नहीं होती परन्तु आत्मा का ज्ञान तो मुनिदशा जैसा ही गृहस्थदशा में भी हो सकता है, उसमें कोई अन्तर नहीं पड़ता और ऐसा आत्मज्ञान करे, उसी गृहस्थ को धन्य कहा है।
श्री कुन्दकुन्दाचार्य तो कहते हैं कि हे श्रावक! तू निर्मल सम्यक्त्व को ग्रहण करके, निरन्तर उसे ही ध्यान में ध्या। ऐसा सम्यक्त्व गृहस्थ को हो सकता है, तभी तो ऐसा कहा है न? इसलिए सच्ची जिज्ञासा प्रगट करके समझना चाहे, उसे स्वानुभव की बात अवश्य समझ में आती है। यह तो सूक्ष्म लगे, परन्तु यह समझने से ही आत्मा का कल्याण है; इसलिए आत्मा के सम्यक्त्व की और स्वानुभव की यह बात भलीभाँति समझनेयोग्य है।
प्रश्न : यह समझकर फिर क्या करना? चौबीस घण्टे का कार्यक्रम क्या?
उत्तर : भाई! धर्मात्मा का चौबीसों घण्टे का यही कार्यक्रम है कि सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप मोक्षमार्ग का सेवन करना और
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