Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-6
उलझन और शान्ति जगत में तेरे पापोदय से कोई प्रतिकूल स्थिति आ पड़े, मिथ्या और महा आक्षेप आवे, देह में रोगादि हों, अपमान आदि हों, तुझे असह्य उलझन होती हो, कषायें होती हों और तू शान्ति-समाधान चाहता हो... तो...
दूसरे किसी के आधार से, दूसरे किसी को प्रसन्न करके, दूसरे किसी की लाचारी करके, किसी के सामने खटपट या कषाय करके शान्ति और समाधान खोजने की अपेक्षा सीधे पहले तेरे ज्ञान की ही शरण में जाकर उससे पूछ कि हे ज्ञान ! इतने प्रतिकूलता के दवाब के बीच तू मुझे शान्ति देगा? मैं तेरी शरण आया-तुझ पर रीझा-तो तू मुझे इन कषाय-प्रसङ्गों में से बचाकर, कषाय से मेरी रक्षा करेगा? और मुझे शान्ति देगा?
बस! इस प्रकार सबसे पहले तेरे ज्ञान से ही पूछकर देख और यदि तेरा ज्ञान तुझे शान्ति देने से इनकार करे, तभी फिर दूसरे के पास जाकर उसकी लाचारी करना... पहले से ही ज्ञान का विश्वास छोड़कर, अन्यत्र लाचारी करने मत जा। तेरा ज्ञान तुझे शान्ति देने से इनकार करेगा ही नहीं... क्योंकि ज्ञान तो महान, उदार, धीर और गम्भीर है। वह तुझे अवश्य समाधान देकर शान्त करेगा... तुझे अन्यत्र कहीं जाना नहीं पड़ेगा। ज्ञान का स्वभाव शान्ति देने का है; इसलिए ज्ञान से भिन्न बाहर में अन्य किसी की शरण मत खोज। ज्ञान का ही विश्वास करके निश्चिन्त बन जा।.
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.