Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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समाधान कर लेता है; इसलिए उसे आकुलता भी कम होती है; अपनी शक्ति को वह चैतन्य की ओर ही केन्द्रित करने के लिये प्रयत्नशील है।
इस प्रकार ज्ञानी के द्वारा जानकर, बारम्बार अभ्यास के द्वारा आत्मा की महिमा दृढ़ करता जाता है। और फिर उसके ही ध्यान में एकाग्रता से आत्मा का बारम्बार अभ्यास करते-करते आत्मा में लीन होने की उत्सुकता जगती है। अन्य सभी विकल्पों से दूर हटकर एक अपने आत्मा सम्बन्धी चिन्तन में गहराई से उतरता है। अभी गुण-गुणी भेद के विकल्प हैं किन्तु उस विकल्प से जुदा ज्ञान लक्ष्य में लिया है। इसलिए विकल्प में अटकना नहीं चाहता परन्तु विकल्प से भिन्न पार ज्ञान का स्वाद लेना चाहता है। इस प्रकार वह जीव ज्ञानस्वभाव के आँगन में आया है। अभी तक निर्विकल्प स्वसंवेदन नहीं हआ है, फिर भी स्वभाव में जाने के लिये पुरुषार्थ तैयार होने लगा है। राग की तुलना में ज्ञान का जोर बढ़ता जाता है। बारबार ऐसा पुरुषार्थ करते-करते आत्ममहिमा का चैतन्यरस जब अपनी पराकाष्ठा तक पहुँचता है, तब उसका उपयोग सूक्ष्म विकल्प से भी यकायक भिन्न होकर, इन्द्रियातीत अन्तरस्वभाव में अभेदरूप हो जाता है अर्थात् निर्विकल्प हो जाता है। ऐसी निर्विकल्प अनुभवदशापूर्वक भगवान आत्मा का सम्यग्दर्शन होता है, तब उसके साथ ही कोई अपूर्व आनन्द और अपार शान्ति का वेदन होता है। बस, यहीं से जीव मोक्षमार्ग में प्रविष्ट हो जाता है॥
अहा, यह दशा धन्य है.... कृतकृत्य है। ऐसी दशावाले आराधक जीव वन्दनीय है।
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