Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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॥ सम्यक्त्व-जीवन
(मुमुक्षुओं द्वारा लिखित) [सम्यक्त्व जीवन लेखमाला : लेखांक -9]
सम्यक्त्व के लिये मुमुक्षु जीव का जीवन कैसा होता है ? सम्यक्त्व की भावना करते-करते उसके अन्तर में कैसे भाव होते हैं ? तथा सम्यक्त्व होने के बाद कैसा सुन्दर उसका जीवन होता है?—इस सम्बन्धी इन विविध लेखों का संकलन किया गया है। पहले के आठ लेख सम्यग्दर्शन-पुस्तक (गुजराती) के पाँचवें भाग में छप चुके हैं। तत्पश्चात् के दूसरे आठ लेख यहाँ दिये जा रहे हैं।
आत्मसन्मुख जीव को पहली ही चोट में राग के पोषक ऐसे कुदेव-कुगुरु का सेवन अन्तर से छूट जाता है, अर्थात् गृहीत मिथ्यात्व उसने छोड़ दिया है; और सच्चे देव-गुरु-धर्म, जो आत्मा की सत्य शान्ति का मार्ग दिखानेवाले हैं-वे उसको अतिशय प्रिय लगते हैं; अत: अपने ज्ञान में उनके स्वरूप का अच्छी तरह निर्णय करके उनका अनुसरण करने लगता है। नव तत्त्व के भावों को जैसा है, वैसा विचार में लाता है; शुभराग इत्यादि बन्धभावों को निर्जरा में नहीं गिनता; एवं उनसे सम्यग्दर्शनादि संवर-निर्जरा होने का नहीं मानता। नव तत्त्व जिस प्रकार है, उसी प्रकार ज्ञान में अच्छी तरह से जानता है।
उस जिज्ञासु की पाँचों इन्द्रियों के विषयों में से सुखबुद्धि घट जाती है और आत्मा के सुख का रंग लगता है। माँस-मधु -मदिरा-अण्डे को तो वह छूता भी नहीं, और जुआ-सिनेमा
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