Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 152
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-6] [137 -बन्द होना, अक्षरों का लिखा जाना, रोटी का बनना-इत्यादि जो -जो क्रियाएँ आँख से देखने में आती हैं, वे सब जड़ के कार्य हैं, अचेतन हैं। अचेतन पदार्थ के वे कार्य, और जीव उनका कर्ताऐसा यदि कोई माने तो वे भी उपरोक्त दृष्टान्तों की तरह जीवअजीव के कारण-कार्य सम्बन्ध में भयङ्कर भूल करते हैं। __हे भाई! किसी भी अचेतन कार्य में, कारणरूप से जीव होऐसा हमको या तुमको किसी को दिखता तो नहीं है। क्या जीव को तूने उस अचेतन कार्य को करता हुआ कभी देखा है ? जीव को तूने देखा तो नहीं; उसका अस्तित्व कैसा है-वह भी तू नहीं जानता, तब फिर जीव कर्ता हुआ—यह बात तू कहाँ से उठा लाया? ___ अरे, जिस वस्तु को तूने देखी ही नहीं, उसके ऊपर व्यर्थ झूठा आरोप क्यों देता है ? यदि तूने जीव को देखा होता तो वह तुझे चेतनस्वरूप ही दिखता, और तब यह जीव, जड़ की क्रिया का कर्ता हो-ऐसा तू कभी नहीं मानता। अतः बिना देखे तू जीव पर अजीव के कर्तृत्व का मिथ्या आरोप मत लगा; यदि किसी के ऊपर मिथ्या आरोप लगायेगा तो तुझे बड़ा पाप लगेगा (-जैसे राजा ने माँस भक्षण से सुख होने का मानकर गलती की थी, वैसे तेरी भी गलती होगी)। किसी राजमहल में चोरी हुई... एक सज्जन जो कि राजमहल से बहुत दूर रहता है, राजमहल में जो कभी आया भी नहीं-फिर भी दूसरा कोई मनुष्य उसके ऊपर कलङ्क लगाता है कि चोरी का कर्ता यह सज्जन है! Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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