Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-6
और अपने शुभ-अशुभ के फल का भोगनेवाला है। अतः हे बादशाह ! आप दुःखदायक ऐसे पापभाव को छोड़ दो। सातारूप सुख का कारण-कार्य सम्बन्ध माँस भक्षण के साथ नहीं है परन्तु पूर्व के पुण्य के साथ है। पाप का फल तो दुःख ही है। पाप के फल में कभी सुख नहीं होता। अतः वस्तु के कारण-कार्य देखने में आपकी भूल है। ___ बुद्धिमान बादशाह, सेठ की न्याययुक्त बात समझ गया, तथा पाप के फल से भयभीत होकर उसने माँस भक्षण का दुष्ट विचार छोड़ दिया। देखो, यह जैनसिद्धान्त का प्रताप ! ___ आईये! यह बात अधिक स्पष्ट समझने के लिये कुछ और दृष्टान्त लेकर विचार करें
जैसे किसी चोर को चोरी करते हुए धन की प्राप्ति हो जाय, तो कहीं चोरी का तो वह फल नहीं है; तथा कसाई, गायों को कत्ल करे और उसे धन मिले; वह कहीं गायों के वध का तो फल नहीं है; वर्तमान चोरी-हिंसा के पापभाव के फल से तो जीव को महान दु:ख होगा। अभी जो धन मिलता है, वह तो पूर्व के पुण्य का बाह्य फल है।
* चोरी करना, कारण और धन की प्राप्ति उसका कार्य, * हिंसा करना, कारण और धन की प्राप्ति उसका कार्य,
-यदि ऐसा कोई माने तो वह कारण-कार्य की भयङ्कर भूल करता है। सच्चे कारण-कार्य को वह नहीं जानता।
-उसी प्रकारभाषा का बोलना, हाथ-पैर का चलना, पुस्तक का खुलना
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