Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-6
उसे (उपरोक्त विद्वान की तरह) संसार से तिरने के लिये उपयोगी नहीं होगा। जिसने बाहर की महिमा छोड़कर अन्तर में चैतन्यविद्या को साधा है, उसे बाहर की अन्य विद्यायें कदाचित् थोड़ी हों तो भी (नाविक की तरह) स्वानुभव की विद्या के द्वारा वह भव-समुद्र को तिर जायेगा और तीन लोक में सबसे श्रेष्ठ ऐसी केवलज्ञान विद्या का वह स्वामी हो जायेगा।
रे जीव! तुझे स्वानुभव की कला सिखानेवाले और संसार से तारनेवाले सन्त-धर्मात्मा मिले हैं तो अब बाहरी कला की जानकारी का महत्त्व छोड़कर, स्वानुभवकला की महत्ता को समझ ! भाई! इसके बिना संसार का अन्त नहीं होगा। इस स्वानुभव के सामने दुनियाँ का अन्य सब पढ़ना-लिखना व्यर्थ है। एक क्षणभर का स्वानुभव हजारों वर्षों के शास्त्र-पठन से भी ज्यादा बढ़कर है; अतः तू इसको जान। धर्मी को आत्मा के ज्ञान-ध्यान से बहुत शुद्धता बढ़ती जाती है और असंख्यातगुणी निर्जरा होती जाती है। बाहरी उघाड़ बढ़े, चाहे न बढ़े; किन्तु अन्तर में चैतन्य के अनुभव की ज्ञान की शक्ति तो उसे बढ़ती जाती है और आवरण एकदम टूटता जाता है। एक क्षणभर के स्वानुभव से ज्ञानी के जितने कर्म टूटते हैं, उतने कर्म, अज्ञानी के लाखों उपाय करने से भी नहीं टूटते। ऐसे सम्यक्त्व की व स्वानुभव की कोई अचिन्त्य महिमा है-ऐसा समझकर हे जीव! तू इसकी आराधना में तत्पर हो।
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