Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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हमारी नौका भली.... हम तो सिर्फ यह जानते है कि पानी में कैसे तिरना!'
तब पण्डित जी बोले-'बस! तब तो नाविक भाई! तुम्हारी जिन्दगानी पानी में ही गयी। हम तो न्याय-कानून-संस्कृतव्याकरण-संगीत-गणित-ज्योतिष आदि सब जानते हैं।'
नाविक ने कहा—'बहुत अच्छी बात, भैया! हमें इनसे क्या? हमें तो हमारी नौका से काम!'
अभी यह बात चल ही रही थी कि इतने में तेज पवन चलने लगी और नौका डाँवाडोल होकर पानी में बहने लगी तथा डूब जाने की स्थिति उपस्थित हो गयी।
तब नाविक ने पूछा- क्यों शास्त्रीजी महाराज! आपको तैरना आता है या नहीं?'
शास्त्रीजी तो घबरा गये और कहा–'नहीं, भाई! मुझे और सब आता है, मात्र एक तैरना नहीं आता।'
नाविक ने कहा-'आप सब कुछ सीखे, किन्तु तैरना नहीं सीखे; यह नौका तो अभी डूब जायेगी, मैं तो तैरना जानता हूँ; अतः मैं तो तैरकर उस पार पहुँच जाऊँगा, किन्तु आप तो इस नौका के साथ अभी डूब जाओगे; अतः आप और साथ में आपकी सब विद्याएँ पानी में डूब जायेंगी।' ___ यह तो एक दृष्टान्त है। इसी तरह जिसको इस भव-समुद्र से तिरना हो, उसे स्वानुभव की विद्या सीखना चाहिए। अन्य अप्रयोजनभूत जानपना बहुत करे, किन्तु अन्तर में स्वभावभूत चैतन्यवस्तु क्या है ? इसको यदि लक्ष्यगत न करे तो बाहरी जानपना
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