Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग -6
चैतन्य को साक्षात् अनुभव में ले- ऐसा स्वभाव है। ऐसे स्वभाव को अनुभव में ले, तब जीव धर्मी होता है।
जैसे सूर्य का स्वभाव, अन्धकार को तोड़ने का है, रखने का नहीं; उसी प्रकार चैतन्य के अनुभवरूप जो सूर्य है, उसका स्वभाव विकल्प को तोड़ने का है, रखने का नहीं । वस्तु ही ऐसे स्वभाववाली है कि उसकी स्वानुभूति करते ही स्वभाव का अनुभव करावे और विकल्प का क्षय करे । इसलिए किसी राग के अवलम्बन द्वारा वस्तु का अनुभव करना चाहे तो वह नहीं हो सकता । वस्तु के स्वभाव में जो नहीं-उसके द्वारा वस्तु का अनुभव कैसे होगा ? और वस्तुस्वभाव के अनुभव द्वारा यदि विकार का नाश न हो तो विकार का नाश करने का दूसरा कोई उपाय नहीं रहता । जैसे सूर्य में से अन्धकार उत्पन्न नहीं होता; इसी प्रकार वस्तु के अनुभव में विकार की उत्पत्ति नहीं होती ।
और, विशेषता यह है कि जैसे, सूर्य में अन्धकार का स्वभाव से ही अभाव है, उसमें अन्धकार है ही नहीं कि जिसे निकालना पड़े! इसी प्रकार स्वानुभवरूप चैतन्यसूर्य में विकल्परूप अन्धकार का स्वभाव से ही अभाव है; उस स्वानुभव काल में विकल्प है ही नहीं कि जिसे नष्ट करना पड़े । अनुभव का भाव और विकल्प का भाव, दोनों भिन्न हैं; प्रकाश का पुञ्ज सूर्य और अन्धकार — उन्हें जैसे एकता नहीं है, वैसे ज्ञान का पुञ्ज स्वानुभव और विकल्प की आकुलता-इन दोनों को कभी एकता नहीं है । ऐसी निर्विकल्पता का अनुभव सम्यग्दर्शन में चौथे गुणस्थान से ही होता है । प्रश्न : स्वानुभव में अबुद्धिपूर्वक विकल्प तो होते हैं ?
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