Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग - 6
पञ्चम काल भी धर्म काल है सम्यग्दर्शन के लिए अभी भी सुकाल है
प्रश्न : इस पञ्चम काल को नियमसार (गाथा 154) में दग्ध अकाल कहा है न? तो ऐसे अकाल में धर्म कैसे होगा ?
उत्तर : भाई ! धर्म के लिये कहीं यह अकाल नहीं है; पञ्चम काल के अन्त तक धर्म रहनेवाला है; इसलिए धर्म के लिये तो यह पञ्चम काल भी सुकाल है ।
पञ्चम काल को अकाल कहा, वह तो केवलज्ञान की अपेक्षा से तथा विशेष चारित्रदशा की अपेक्षा से अकाल कहा है परन्तु सम्यग्दर्शन का कहीं पञ्चम काल में अभाव नहीं कहा है; सम्यग्दर्शनादि धर्म तो अभी हो सकते हैं। भाई ! सम्यग्दर्शन के लिये तो अभी सुकाल है, उत्तम अवसर है; इसलिए काल का बहाना निकालकर तू सम्यग्दर्शन में प्रमादी मत हो ।
रे जीव ! तू इतना अधिक शक्तिहीन नहीं तथा यह पञ्चम काल इतना अधिक खराब नहीं कि सम्यग्दर्शन भी न हो सके ! अनेक जीव इस पञ्चम काल में सम्यग्दृष्टि होते हैं । सम्यग्दर्शनज्ञानसहित चारित्रदशा के धारक अनेक मुनिभगवन्त भी (कुन्दकुन्दस्वामी, समन्तभद्रस्वामी इत्यादि) इस पञ्चम काल में हुए हैं। वे भी जन्म के बाद इस पञ्चम काल में ही सम्यग्दर्शन को प्राप्त हुए हैं। पञ्चम काल में भरतक्षेत्र में सम्यक्त्वसहित आराधक जीव अवतरित नहीं होते परन्तु अवतरित होने के पश्चात् नया सम्यग्दर्शन तो पञ्चम काल में भी प्राप्त किया जा सकता है और
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