Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
88]
[सम्यग्दर्शन : भाग-6
रागादि परिणाम छूट गये; केवल निजस्वरूप में ही तन्मय परिणाम हुए। ऐसी विशेषता के कारण स्वानुभवकाल में सिद्ध भगवान जैसा अतीन्द्रिय स्वाभाविक आनन्द विशेष अनुभव में आता है।
स्वानुभूति का सुख वचनातीत है। जगत् के किसी पदार्थ में उस सुख का अंश भी नहीं है । इन्द्रियजनित सुख की अपेक्षा इस सुख की जाति ही अलग है; यह तो आत्मजनित सुख है, आत्मा के स्वभाव में से उत्पन्न हुआ है। जिसने एक बार उपयोग को अन्तर में जोड़कर स्वानुभूति का ऐसा अपूर्व सुख चख लिया हैऐसे धर्मी को, जितनी वीतरागता हुई है, उतना आत्मिकसुख तो सविकल्पदशा के समय भी वर्तता है, परन्तु निर्विकल्पदशा के समय उपयोग, निजस्वरूप में तन्मय होकर जो अतीन्द्रिय परम आनन्द का वेदन करता है, उसकी कोई विशिष्ट विशेषता है। __ अहा! स्वानुभव का आनन्द क्या है ? इसकी कल्पना भी अज्ञानी को नहीं आती। जिसने अतीन्द्रिय चैतन्य को कभी देखा नहीं, जिसने इन्द्रिय विषयों में ही आनन्द माना है, उसे स्वानुभव के अतीन्द्रिय आनन्द की गन्ध भी कहाँ से होगी? अरे! ऐसे स्वानुभव की चर्चा भी जीव को दुर्लभ है। जिसने ज्ञान को बाह्य इन्द्रिय-विषयों में ही भ्रमाया है, ज्ञान को अन्दर झुकाकार अतीन्द्रिय वस्तु को कभी लक्ष्यगत नहीं किया, उसे उस अतीन्द्रिय वस्तु के अतीन्द्रियसुख की कल्पना भी कहाँ से आयेगी? नीम को खानेवाली गिलहरी आम का स्वाद कैसे जानेगी? इसी प्रकार इन्द्रियज्ञान में ही लुब्ध प्राणी, अतीन्द्रियसुख के स्वाद को कैसे जानेंगे? ज्ञानी ने चैतन्य के अतीन्द्रियसुख को जाना है; उसका अपूर्व स्वाद चखा
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.