Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-6
__ भाई! यह तो सर्वज्ञ का निर्ग्रन्थमार्ग है। यदि तूने स्वानुभव द्वारा मिथ्यात्व की गाँठ नहीं तोड़ी तो निर्ग्रन्थमार्ग में किस प्रकार आया? यदि जन्म-मरण की गाँठ नहीं तोड़ी तो निर्ग्रन्थमार्ग में जन्मकर तूने क्या किया? भाई ! ऐसा अवसर मिला तो ऐसा उद्यम कर कि जिससे तुझे अपूर्व शान्ति मिले, तेरे जन्म-मरण टलें और अल्प काल में मुक्ति हो।
इसमें सम्यग्दर्शन का स्वरूप और वह प्रगट करने की विधि भी साथ ही आ जाती है। जिसे सम्यग्दर्शन प्रगट करना हो, उसे क्या करना? सम्यग्दर्शन को कहाँ खोजना?
1- पर में खोजे तो सम्यग्दर्शन मिले, ऐसा नहीं है।
2- देहादि की क्रिया में या शुभराग में भी सम्यग्दर्शन मिले, ऐसा नहीं है। ___3- सम्यग्दर्शन तो आत्मा का ही भाव है, इसलिए आत्मा में से ही वह मिलता है।
4- आत्मा आनन्द और ज्ञानस्वरूप है, अन्तर्मुख होकर उसकी निर्विकल्प प्रतीति करना, वह सम्यग्दर्शन है।
5- वह सम्यग्दर्शन, मन और इन्द्रियों से पार निर्विकल्प आत्मप्रतीतिरूप है।
6- वह सम्यग्दर्शन, स्व में उपयोग के समय या पर में उपयोग के समय एक समान वर्तता है।
7- प्रत्यक्ष और परोक्ष-ऐसे भेद सम्यग्दर्शन में नहीं हैं। 8- ज्ञान अन्तर्मुख होने पर आत्मा के निर्विकल्प आनन्द का
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