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________________ www.vitragvani.com 80] [सम्यग्दर्शन : भाग-6 __ भाई! यह तो सर्वज्ञ का निर्ग्रन्थमार्ग है। यदि तूने स्वानुभव द्वारा मिथ्यात्व की गाँठ नहीं तोड़ी तो निर्ग्रन्थमार्ग में किस प्रकार आया? यदि जन्म-मरण की गाँठ नहीं तोड़ी तो निर्ग्रन्थमार्ग में जन्मकर तूने क्या किया? भाई ! ऐसा अवसर मिला तो ऐसा उद्यम कर कि जिससे तुझे अपूर्व शान्ति मिले, तेरे जन्म-मरण टलें और अल्प काल में मुक्ति हो। इसमें सम्यग्दर्शन का स्वरूप और वह प्रगट करने की विधि भी साथ ही आ जाती है। जिसे सम्यग्दर्शन प्रगट करना हो, उसे क्या करना? सम्यग्दर्शन को कहाँ खोजना? 1- पर में खोजे तो सम्यग्दर्शन मिले, ऐसा नहीं है। 2- देहादि की क्रिया में या शुभराग में भी सम्यग्दर्शन मिले, ऐसा नहीं है। ___3- सम्यग्दर्शन तो आत्मा का ही भाव है, इसलिए आत्मा में से ही वह मिलता है। 4- आत्मा आनन्द और ज्ञानस्वरूप है, अन्तर्मुख होकर उसकी निर्विकल्प प्रतीति करना, वह सम्यग्दर्शन है। 5- वह सम्यग्दर्शन, मन और इन्द्रियों से पार निर्विकल्प आत्मप्रतीतिरूप है। 6- वह सम्यग्दर्शन, स्व में उपयोग के समय या पर में उपयोग के समय एक समान वर्तता है। 7- प्रत्यक्ष और परोक्ष-ऐसे भेद सम्यग्दर्शन में नहीं हैं। 8- ज्ञान अन्तर्मुख होने पर आत्मा के निर्विकल्प आनन्द का Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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