Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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जहाँ-जहाँ आत्मा नहीं, वहाँ-वहाँ ज्ञान भी नहीं; और जहाँ -जहाँ ज्ञान नहीं, वहाँ-वहाँ आत्मा भी नहीं। जैसे कि अचेतनशरीर।
इस प्रकार आत्मा को और ज्ञान को परस्पर व्याप्तिपना है, अर्थात् एक हो, वहाँ दूसरा हो ही; और एक न हो, वहाँ दूसरा भी न हो - ऐसे परस्पर अविनाभावपने को समव्याप्ति कहते हैं। ___ 'शरीर हो, वहाँ आत्मा होता है'- ऐसे सच्चा अनुमान नहीं हो सकता, क्योंकि सिद्धभगवान को शरीर न होने पर भी आत्मा है
और मृतक कलेवर में शरीर होने पर भी आत्मा नहीं है; इसलिए शरीर को और जीव को व्याप्ति नहीं है।
शरीर के बिना आत्मा होता है परन्तु ज्ञान के बिना आत्मा कभी नहीं होता; इसलिए ज्ञान, वह आत्मा का स्वरूप है, परन्तु शरीर तो आत्मा से भिन्न है। इसी प्रकार शरीर की तरह राग-द्वेष के बिना भी आत्मा होता है; इसलिए राग-द्वेष भी वास्तव में आत्मा का स्वरूप नहीं है - ऐसे अनेक प्रकार से युक्ति से विचारकर आत्मा का स्वरूप निर्णय करना, उसे अनुमान कहते हैं।
मैं आत्मा हूँ क्योंकि मुझमें ज्ञान है और मैं ज्ञान से जानता हूँ।
शरीर, वह आत्मा नहीं क्योंकि उसमें ज्ञान नहीं, वह कुछ जानता नहीं है।
आत्मा ज्ञानस्वभावी है, क्योंकि ज्ञान के बिना आत्मा कभी नहीं होता।
तथा आत्मा के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं ज्ञान कभी नहीं होता। शुद्धनय से मैं शुद्ध सिद्धसमान हूँ; अशुद्धनय से मुझमें अशुद्धता
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