Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-6
आनन्द और समकिती का भूमिका योग्य अतीन्द्रिय आनन्द-इन दोनों आनन्द की एक ही जाति है, मात्र पूर्ण और अपूर्ण का ही भेद है परन्तु जाति में तो जरा भी भेद नहीं है; इसलिए समकिती का आनन्द, वह सिद्ध भगवान के आनन्द का ही अंश है; आनन्द की तरह उनका मतिज्ञान भी केवलज्ञान का ही अंश है। पूर्ण और अपूर्ण का भेद होने पर भी दोनों की जाति में किञ्चित् भी भेद नहीं है।
सम्यक्मति-श्रुत यदि केवलज्ञान की जाति का न हो और विजातिय हो तो वह केवलज्ञान को किस प्रकार साध सकेगा? केवलज्ञान की जाति हो, वही केवलज्ञान को साध सकेगा। राग, वह केवलज्ञान की जाति नहीं है; इसलिए वह केवलज्ञान को नहीं साध सकता; सम्यक् मति-श्रुतज्ञान, वह केवलज्ञान की जाति है; इसलिए अन्तर में एकाग्र होकर वह केवलज्ञान को साधता है।
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.