Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग -6
निर्विकल्प अनुभव के समय की स्थिति का वर्णन
समयसार, गाथा 144 में विकल्पों से पार ज्ञानस्वभाव का अपूर्व निर्विकल्प अनुभव होने के समय का रोमाञ्चकारी वर्णन किया है। अनुभूति का मार्ग एकदम खोल दिया है।
जो ज्ञान, पाँच इन्द्रियाँ और छठवें मन द्वारा प्रवर्तता था, वह ज्ञान सर्व ओर से सिमटकर निर्विकल्प अनुभव में केवल स्वरूप -सन्मुख हुआ क्योंकि वह ज्ञान, क्षयोपशमरूप है, वह एक काल में एक ज्ञेय को ही जान सकता है। अब वह ज्ञान, स्वरूप जानने को प्रवर्तित हुआ, तब अन्य को जानना सहज ही बन्द हुआ, वहाँ ऐसी दशा हुई कि बाह्य अनेक शब्दादिक विकार होने पर भी स्वरूप-ध्यानी को उनकी कोई खबर नहीं । इस प्रकार मतिज्ञान भी स्वरूपसन्मुख हुआ ।
साधक को निर्विकल्प अनुभव में मति - श्रुतज्ञान काम करते हैं । मति - श्रुतज्ञान, वे क्षयोपशमभावरूप हैं; इसलिए एक समय में एक ज्ञेय को ही जानने में वे प्रवर्तते हैं; या स्व को जानने में उपयोग हो और या पर को जानने में उपयोग हो । केवलज्ञान में तो स्व-पर सबको एकसाथ जानने की पूर्ण सामर्थ्य प्रगट हो गयी है परन्तु इस ज्ञान में अभी ऐसा सामर्थ्य विकसित नहीं हुई है; इसलिए जब स्व को जानने में उपयोग हो, तब पर को जानने में उपयोग नहीं होता और जब पर को जानने में उपयोग हो, तब स्व को जानने में उपयोग नहीं होता । स्व को जानने में उपयोग न हो, इसलिए कहीं अज्ञान नहीं हो जाता क्योंकि स्वसंवेदन के समय जो ज्ञान हुआ है, वह लब्धरूप से तो वर्तता ही है।
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.