Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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एक वर्तमान पर्याय तीनों काल को जाने, उससे कहीं उसे अड़चन नहीं होती, या उसमें अशुद्धता नहीं हो जाती। उसी प्रकार आत्मा त्रिकाल स्थिर रहे, उससे कहीं उसे काल की अड़चन या अशुद्धता नहीं हो जाती, नित्यपना तो सहज स्वभाव है। जिस प्रकार अनित्यपना है, उसी प्रकार नित्यपना भी है-दोनों स्वभाववाला आत्मा है। __वर्तमान में जो आत्मा है, वही भूतकाल में था और भविष्य में रहेगा-ऐसा वस्तुस्वरूप है, तीनों काल का स्पर्श करनेवाली वस्तु है; उसे त्रिकाल स्थित रहने में बोझ या अशुद्धता नहीं है। ऐसे द्रव्यस्वभाव के स्वीकारपूर्वक उसमें एकाग्र होकर, अतीन्द्रियभावरूप परिणमित हुई पर्याय, राग से भिन्न कार्य करती है; और उसी स्वभाव के आश्रय से केवलज्ञान हो, तब वह पर्याय एक-एक समय को भिन्न करके जान सकती है। एक समय को जान सकने का कार्य छद्मस्थ का स्थूल उपयोग नहीं कर सकता; उसका उपयोग असंख्य समय में कार्य करे, ऐसा स्थूल है । बौद्ध जैसे भले ही आत्मा को सर्वथा क्षणिक-एक समय का मानें, परन्तु उसका ज्ञान कहीं एक-एक समय की पर्याय को नहीं पकड़ सकता, वह भी असंख्य समय की स्थूल पर्याय को ही जान सकता है।
द्रव्य क्या, पर्याय क्या, पर्याय की शक्ति कितनी?- इन बातों का अज्ञानी को निर्णय नहीं होता। वह चाहे जिस वस्तु को चाहे जिस प्रकार से अंधाधुंध-अंधे के समान मान लेता है। अरे, द्रव्य -गुण-पर्याय में से एक भी वस्तु का सच्चा निर्णय करे तो उस ज्ञान में समस्त द्रव्य-गुण-पर्यायों का, तीनों लोक-तीन काल का निर्णय
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