Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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को सविकल्पदशा के समय भी वर्त रहा है, परन्तु उस भूमिका में परिणाम की स्थिति कैसी होती है, वह यहाँ बताना है। _ विषय-कषाय के किञ्चित् भी भाव हों, वहाँ सम्यग्ज्ञान होता ही नहीं अथवा विषय-कषाय के परिणाम सर्वथा छूटकर वीतराग हो, तब ही सम्यग्ज्ञान हो-ऐसा कोई कहे तो वह बात यथार्थ नहीं है। हाँ, इतना अवश्य है कि उसे विषय-कषाय का रस अन्तर में से सर्वथा छूट जाता है, उसमें कहीं अंशमात्र भी आत्मा का हित या सुख नहीं लगता; इसलिए उसमें स्वच्छन्दता से तो वर्तता ही नहीं। वह सदन निवासी तदपि उदासी' होता है। इस प्रकार धर्मी को सम्यग्ज्ञान के साथ शुभ-अशुभपरिणाम भी वर्तते हैं, परन्तु इससे कहीं उसके सम्यक्श्रद्धा-ज्ञान दूषित नहीं हो जाते। ज्ञानपरिणाम भिन्न हैं और शुभाशुभपरिणाम भिन्न हैं, दोनों की धारा भिन्न है। विकल्प और ज्ञान की भिन्नता का भान, विकल्प के समय भी हटता नहीं है। उपयोग भले पर को जानने में रुका हो, इससे कहीं श्रद्धा या ज्ञान मिथ्या नहीं हो जाते। इस प्रकार धर्मी को सविकल्पदशा के समय भी सम्यक्त्व की धारा तो ऐसी की ऐसी वर्तती ही है और इससे उसे मोक्ष को साधने का काम चल ही रहा है।
देखो, यह सम्यग्दृष्टि की अन्दर की दशा ! यह दशा तो अद्भुत है। अहा! धन्य है उन साधर्मियों को कि जो ऐसे स्वानुभव की चर्चा भी करते हैं। आत्मा का प्रेम जगाकर प्रीतिपूर्वक ऐसे सम्यक्त्वादि की बात उत्साह से सुनते हैं, वे भी महाभाग्यशाली हैं और यह बात समझकर अन्दर स्वानुभूति करें, वे तो अपूर्व कल्याण
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