Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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पावेगा! शास्त्रकार ने एक खास शर्त रखी है कि 'चैतन्य के प्रति प्रेम से' उसकी बात सुनें; अर्थात् जिसके अन्तर में जरा सा भी राग का प्रेम हो, राग से लाभ होने की बुद्धि हो, उसको चैतन्य का सच्चा प्रेम नहीं है किन्तु राग का प्रेम है, उसको चैतन्यस्वभाव के प्रति भीतर से सच्चा उल्लास नहीं आता। यहाँ तो चैतन्य की प्रीतिवाले सुलटे जीव की बात है। राग का प्रेम व देह-परिवार का प्रेम तो जीव अनादि से करता ही आया है, किन्तु अब उस प्रेम को तोड़कर जिसने चैतन्य का प्रेम जागृत किया; वीतरागी स्वभावरस का रङ्ग लगाया, वह जीव धन्य है.... वह निकट मोक्षगामी है। चैतन्य की बात सुनते ही भीतर में रोमाञ्च उल्लसित हो जाय... असंख्य प्रदेश चमक उठे कि वाह ! मेरे आत्मा की यह कोई अपूर्व नयी बात मुझे सुनने को मिली, कभी जो नहीं सुना था, वह चैतन्यतत्त्व आज मेरे सुनने में आया; पुण्य-पाप से भिन्न ही यह कोई अनोखी बात है; इस तरह अन्तरस्वभाव का उल्लास लाकर
और बहिर्भावों का (पुण्य-पाप आदि परभावों का) उल्साह छोड़कर जिसने एक बार स्वभाव का श्रवण किया, उसका बेड़ा पार! श्रवण तो निमित्त है किन्तु इससे उसके भाव में अन्तर पड़ गया, स्वभाव
और परभाव के बीच में थोड़ी सी तराड़ पड़ गयी; अब वह उन दोनों का भिन्न अनुभव करके ही रहेगा। ___ 'मैं ज्ञायक चिदानन्दघन हूँ; एक समय में परिपूर्ण शक्ति से भरा हुआ ज्ञान और आनन्द का सागर हूँ'-ऐसी अध्यात्म की बात सुनानेवाल सन्त-गुरु भी महाभाग्य से ही मिलते हैं और महाभाग्य से जब ऐसी बात सुनने को मिली तब, प्रसन्नचित्त से अर्थात् इसके सिवाय दूसरे सबकी प्रीति छोड़कर इसकी ही प्रीति करके, 'मुझे
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