Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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के समय व्यवहारसम्यक्त्व, ऐसा भी नहीं है। चौथे गुणस्थान में मिथ्यात्व को नष्ट करके निर्विकल्प स्वानुभूतिपूर्वक शुद्धात्मप्रतीतिरूप जो सम्यग्दर्शन प्रगट हुआ है, वह निश्चय-सम्यग्दर्शन है और यह निश्चयसम्यग्दर्शन, सविकल्प और निर्विकल्प दोनों दशाओं के समय एक सरीखा ही है। जब सम्यग्दृष्टि को सम्यग्दर्शन प्रगट हुआ, तब तो स्वानुभव और निर्विकल्पता हुई, परन्तु उस निर्विकल्प स्वानुभव में सदाकाल नहीं रह सकता, निर्विकल्पदशा दीर्घ काल तक नहीं रहती; पश्चात् सविकल्पदशा में आने पर शुभ और अशुभ में उपयोग जुड़ता है और शुद्धात्मप्रतीति तो उस समय भी चालू ही रहती है - ऐसी समकिती महात्मा की स्थिति है।
चौथे गुणस्थान में निर्विकल्प अनुभूति तो कभी ही होती है; इसलिए निर्विकल्पता या सविकल्पता से सम्यक्त्व का माप नहीं निकलता। सम्यग्दृष्टि की विशेषता यह है कि स्वानुभूति में जिस चैतन्यरस का वेदन हुआ, उस चैतन्यस्वरूप ही अपने आत्मस्वरूप को प्रतीति में लिया है; सविकल्पदशा के समय भी उस चैतन्यस्वरूप में शुभाशुभराग को वे मिलाते नहीं हैं, दोनों के स्वाद सर्वथा भिन्न ही जानते हैं और स्वानुभूति के बल से अनन्तानुबन्धी कषाय के अभाव से जो अपूर्व शान्ति प्रगट हुई है, वह शान्ति उन्हें निरन्तर चालू रहती है। उस शान्ति द्वारा ही उसकी सच्ची पहिचान होती है।
'शान्त दशा तिनकी पहिचानी, करे कर जोड़ बनारसी' वंदन।'
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