Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-6
आ जाता है और वह ज्ञान, राग से भिन्न होकर अन्तरस्वभाव की ओर उन्मुख हो जाता है; उसमें अनन्त गुणों के सुख का रस भरा हुआ है। अहा! धर्मी की एक ज्ञानपर्याय में कैसी अचिन्त्य शक्ति भरी हुई है और उसमें कैसा अद्भुत आत्मवैभव प्रगट हुआ है, उसकी जगत को खबर नहीं है। जगत को ज्ञात हो या न हो, परन्तु वे ज्ञानी स्वयं अपने में तो अपने वैभव का अनुभव कर ही रहे हैं।
हे भाई! तेरी वर्तमान पर्याय में आनन्द तो है नहीं, और यदि तू इस पर्याय जितना ही क्षणिक आत्मा मानेगा तो आनन्द कहाँ से प्राप्त करेगा? आत्मा को सर्वथा क्षणिक मानने पर तुझे कभी आनन्द की प्राप्ति नहीं होगी। नित्यस्वभाव, जो आनन्द से सदा परिपूर्ण है; उसके सन्मुख होकर परिणमित होने पर अनित्य, ऐसी पर्याय में भी तुझे आनन्दरूपी अमृत की सविता प्रवाहित होगी। नित्य-अनित्यरूप सम्पूर्ण वस्तु के स्वीकार बिना आनन्द का अनुभव नहीं हो सकता। नित्य अंश और अनित्य अंश—दोनों स्वभाव की एकतारूप अखण्ड वस्तुस्वभाव है, उस अनेकान्तमय वस्तुस्वरूप को प्रकाशित करनेवाला जैनशासन जयवन्त है।
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.