Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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[ सिद्धत्व के हेतुभूत भावना
भगवान श्री यतिवृषभआचार्यरचित त्रिलोकप्रज्ञप्ति नामक प्राचीन ग्रन्थ में सिद्धलोकप्रज्ञप्ति नामक अधिकार में सिद्धत्व के हेतुभूत भावना का आनन्दकारी वर्णन गाथा 18 से 65 तक 48 गाथा द्वारा किया है। सिद्धत्व के हेतुभूत यह उत्तम भावना पढ़कर गुरुदेव को बहुत प्रमोद हुआ था और प्रवचन में श्रोताजनों के समक्ष उसका वर्णन किया था, जिसे सुनकर सबको हर्षोल्लास हुआ था। अहा! सिद्धत्व के हेतुभूत भावना से किसे आनन्द नहीं होगा? इसलिए वह
आनन्दकारी भावना यहाँ दी जाती है। ___यह शास्त्रकर्ता श्री यतिवृषभाचार्य, धवला-जयधवला के टीकाकार से भी प्राचीन हैं और इस भावना अधिकार में आयी हुई बहुत सी गाथायें, भगवान श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेव के समयसार, प्रवचनसार इत्यादि शास्त्रों की गाथाओं से लगभग मिलती है-मानों कि उनके शास्त्रों का दोहन करके ही यह भावना अधिकार रचा गया हो! ऐसा ही लगता है। प्रोफेसर हीरालालजी जैन इस सम्बन्ध में लिखते हैं कि 'इस अन्तिम अधिकार में वर्णित सिद्धों का वर्णन और आत्मचिन्तन का उपाय (शुद्धात्मभावना), वह जैन विचारधारा की प्राचीन सम्पत्ति है।' चलो, हम भी अपने आत्मा को सिद्धत्व के हेतुभूत इस भावना में जोड़े :
18- जैसे चिरसञ्चित ईंधन को पवन से प्रज्वलित अग्नि शीघ्र ही जला देती है; उसी प्रकार बहुत कर्मरूपी ईंधन को शुद्धात्मा के ध्यानरूपी अग्नि क्षणमात्र में जला देती है।
19- जो जीव, दर्शनमोह और चारित्रमोह को नष्ट करके,
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