Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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61- जब तक हृदय में आत्मस्वभावलब्धि प्रकाशवान नहीं होती, तब तक ही जीव, शुभ-अशुभजनक ऐसे सङ्कल्पविकल्परूप कर्म को करता है। ____62- बन्धों के स्वभाव को, आत्मा के स्वभाव को जानकर, जो बन्धों में अनुरक्त नहीं होता, वह जीव, कर्मों से छुटकारा करता है। ___63- जब तक आत्मा और आस्रव, इन दोनों के विशेष-अन्तर को नहीं जानता, तब तक वह अज्ञानी जीव, विषयादि में प्रवर्तमान रहता है। ___64- ज्ञानी जीव अनेक प्रकार के पुद्गलद्रव्य को जानता होने पर भी, परद्रव्य-पर्यायरूप परिणमित नहीं होता, उन्हें ग्रहण नहीं करता, और उनरूप उत्पन्न नहीं होता।
65- जो विमूढ़मति आत्मा, परद्रव्य को शुभ अथवा अशुभ मानता है, वह मूढ़ अज्ञानी जीव, दुष्ट अष्ट कर्मों से बँधता है।
- इस प्रकार भावना समाप्त हुई। सिद्धपद के हेतुभूत, ऐसी यह उत्तम शुद्धात्मभावना भाने से मुमुक्षु जीव सिद्धपद को पाता है।
णमो सिद्धाणं!
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