Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग -6 ]
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स्वभाव - अवलम्बी ज्ञान की अगाध ताकत
मेरा आत्मा सर्वज्ञस्वभावी वस्तु है - ऐसा निर्णय करके, जिसने अन्तर्मुख ज्ञान में अपने आत्मा को स्वज्ञेय बनाया, उस साधक जीव की राग से भिन्न हुई ज्ञानपर्याय में कितना अगाध सामर्थ्य है ! कितनी अपार शान्ति है ! उसे जानने पर भी आत्मा में साधकभाव की धारा उल्लसित हो जाये !–ऐसा सुन्दर वर्णन आप इस लेख में पढ़ेंगे।
साधक की वर्तमान पर्याय में तीनों काल के द्रव्य-गुण- पर्याय को जानने की शक्ति है । धर्मी को जिस प्रकार अपनी वर्तमानपर्याय की शक्ति का विश्वास है, उसी प्रकार भविष्य की पर्याय के सामर्थ्य का भी विश्वास है... इसलिए भविष्य के लिये मैं अभी से धारणा कर लूँ, इस प्रकार धारणा पर उसका भार नहीं रहता । भविष्य में मेरी जो पर्याय होगी, वह पर्याय उस समय के विकास के बल से भूत-भविष्य को जान ही लेगी; इसलिए भविष्य की पर्याय के लिये अभी धारणा कर लूँ या बाह्य का क्षयोपशम बढ़ा लूँ—ऐसा धर्मी का लक्ष्य नहीं है । उस उस समय की भविष्य की पर्याय, अतीन्द्रियस्वभाव के अवलम्बन के द्वारा जानने का कार्य करेगी । अहा ! आत्मा की अनुभूति में ज्ञान एकाग्र हुआ, वहाँ धर्मी को अन्य जानने की आकुलता नहीं होती । जहाँ सम्पूर्ण ज्ञायक -स्वभाव अनुभूति में साक्षात् वर्तता है, वहाँ थोड़े-थोड़े परज्ञेयों को जानने की आकुलता कौन करे ? यह बात प्रवचनसार की 33 वीं गाथा में कही है—'विशेष आकाँक्षा के क्षोभ से बस होओ ! स्वरूपनिश्चल ही रहते हैं । '
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Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.