Book Title: Samyag Darshan Part 06
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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44- जो मोहकर्म का क्षय करके तथा विषयों से विरक्त होकर और मन को रोककर स्वभाव में समावस्थित होता है, वह जीव, कर्मबन्धनरूप साँकल से छूट जाता है।
45- जो प्रकृति-स्थिति-अनुभाग और प्रदेशबन्ध से रहित आत्मा है, वही मैं हूँ-ऐसा चिन्तन करना चाहिए तथा उसी में स्थिर भाव करना चाहिए। ____46- जो केवलज्ञानस्वभावी है, केवलदर्शनस्वभावी है, सुखमय है और केवलवीर्यस्वभावी है, वह मैं हूँ-ऐसा ज्ञानी चिन्तवन करता है।
47- जो जीव सर्व सङ्ग से रहित होकर अपने आत्मा को आत्मा द्वारा ध्याता है, वह अल्प काल में सर्व दु:खों से छुटकारा पाता है।
48- जो भयानक संसाररूपी महासमुद्र में से निकलना चाहता है, वह इस प्रकार जानकर शुद्धात्मा का ध्यान करता है। ____49- प्रतिक्रमण, प्रतिसरण, प्रतिहरण, धारणा, निवृत्ति, निन्दन, गर्हण और बुद्धि-इन सबकी प्राप्ति निज आत्मभावना से होती है। ____50- दर्शनमोह ग्रन्थि को नष्ट करके, यदि श्रमण, राग-द्वेष का क्षय करता हुआ, सुख-दु:ख में समभावी होता है तो अक्षयसुख को प्राप्त करता है। ___51- देह और धन में यह 'मैं' और 'यह मेरे' ऐसे ममत्व को जो नहीं छोड़ता, वह मूर्ख-अज्ञानी जीव, दुष्ट अष्टकर्मों से बँधता है। _____52- पुण्य से विभव, विभव से मद, मद से मतिमोह, मतिमोह से पाप होता है; इसलिए पुण्य को भी छोड़ना चाहिए।
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