Book Title: Samurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Author(s): Yashovijaysuri, Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust
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संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य
समर्थवृत्तिकार श्रीअभयदेवसूरि महाराज वृत्ति में बताते हैं कि - “उच्चार-प्रश्रवण-खेल-सिंघान-जल्लानां पारिष्ठापनिका = त्यागस्तत्र समितिर्या तथेति। तत्रोच्चारः = पुरीषम्, प्रश्रवणं = मूत्रम्, खेलः = श्लेष्मा, जल्लो = मलः, सिंघानो = नासिकोद्भवः श्लेष्मा।" • पारिष्ठापनिका समिति से ही संमूर्छिम मनुष्य की कायिक
विराधना की सिद्धि 編國語露露藏邏照疑露露還要經過設
साधुजीवन में पारिष्ठापनिका के योग्य ऐसी ढेर सारी उपधिवस्तुएँ समाविष्ट होती है। उनमें श्रमण के मृतदेह की पारिष्ठापनिका को तो महापारिष्ठापनिका के नाम से नवाजा गया है। अतिरिक्त आहारादि की भी पारिष्ठापनिका उपदिष्ट है। तथापि उन सब आहार-मृतदेह वगैरह की पारिष्ठापनिका को छोड़ कर मुख्यतया जो संमूर्छिम मनुष्यों की उत्पत्ति के प्रायोग्यस्थान हैं, तदुपरांत प्रतिदिन बारंबार जिसकी पारिष्ठापनिका करनी है वैसी उच्चार-प्रश्रवण (=मल-मूत्र) जैसी ही परिष्ठाप्य वस्तु का ठाणांगसूत्र में पंचम समिति के नाम में उल्लेखपूर्वक किया गया ग्रहण किस बात की ओर अंगुलीनिर्देश करता है ? अनुप्रेक्षा की क्षणों में गंभीरता एवं गहराई से यह बात विचारणीय है।
क्या तीर्थंकर परमात्मा संमूर्छिम मनुष्य की विराधना प्रति श्रमणों को जागृत रहने का उपदेश देते हैं वैसा नहीं लगता ? शहरीकरण
और उद्योगीकरण के वर्तमान समय में संमूर्छिम मनुष्यों की विराधना से बचने की पारिष्ठापनिका समिति श्रमण-श्रमणीवर्ग के लिए कठिन और दुराराध्य बनी है। ऐसे समय में रामलालजी महाराज की इस अभिनव मान्यता के अनुसार संमूर्छिम मनुष्यों की विराधना ही अशक्य होना यदि मान लिया जाए तो पारिष्ठापनिका समिति अत्यंत आसान एवं सुकर बन जाएगी। १०२४ वें विकल्प वाली स्थंडिलभूमि-निर्दोष