Book Title: Samurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Author(s): Yashovijaysuri, Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust
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संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य जे भिक्खु दंडयं वा लट्ठियं...... जं वेलं कालगओ जाए वेलाए कालगओ दिया .......... जो भिक्षु रात्रि अथवा विकाल ......... जोयणसयं तु गंताऽणाहारेणं .. डयलग-ससरक्ख-कुडमुह ........... णवणीयतुल्ल ....... तथा यदि गृहे संज्ञां व्युत्सृजति. तं परिण्णाय मेधावी .......... तं च लोणादि .................. तत्थेव त्ति थंडिले ............... ततो निग्गहिओ छलूगो........... तेउक्काइयाणं णो सीता...... तेणिच्छिए तस्स जहिं अगम्मा ......... थीनरसंजोगेसु.. दसविधे ओरालिते असज्झातिते . दुरुपलक्ष्यो गुप्ताकार ............. ध्यामनम् अग्निकायेन यदि ........ नगर की गटरों.......... नारकैकेन्द्रियदेवानां (तत्त्वार्थभाष्य). नारकैकेन्द्रियदेवानां (तत्त्वार्थवृत्ति) नेरइयाणं भंते !.... नो कप्पइ निग्गंथस्स एगाणियस्स .. नो कप्पइ निग्गंथाणं .. नो कप्पड़ निग्गंथीए एगाणियाए .....
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