Book Title: Samurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Author(s): Yashovijaysuri, Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 147
________________ कृतज्ञता भरी स्मृति इस समस्त निबंधलेखन के दौरान जब जब जिन शास्त्रपाठों की आवश्यकता महसूस हुई तब तब वे शास्त्रपाठ एवं अन्य शास्त्रपाठ, सामने चल कर मानो अपनी हाज़री की पूर्ति के लिए आते हो, उतनी सरलता से संप्राप्त हए हैं। अन्यथा मेरे जैसे अल्पज्ञ द्वारा यह सृजन शक्य ही न बनता । उस अदृश्य शक्ति को - चाहे उसे कृपा कहो या कुदरत - मेरे लाखों सलाम... :: आर्थिक सौजन्य :: श्री प्लोट श्वे. मू. जैन तपगच्छ संघ राजकोट ज्ञाननिधि में से खूब खूब अनुमोदना...

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