Book Title: Samurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Author(s): Yashovijaysuri, Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 128
________________ संमूर्च्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य शुक्र - सिंघाणक - श्लेष्म शुक्रों में श्लेष्मादीनां च .. श्लेष्मादीनां व्युत्सर्गे .. सम्मुच्छणपंच्चक्खे सीदुण्हमिस्सजोणी. से किं तं मणुस्सा ? संमुच्छिमपंचिंदिय संमूच्छिममणुस्साणं सिंघाणएस वंतिसु संवृता = सङ्कटा = दुरुपलक्ष्यः संवृतो संमूर्च्छनजपञ्चेन्द्रियेषु संमूर्च्छिम मनुष्यों की सव्वेसु चेव से बे संतिमे तसा पाणा.. — सूर्यास्त के पूर्व .. सोणिय मंसं चम्मं सोणिय मंसं चम्मं सोणिय - मुत्त-पुरीसे सर्वनाशे समुत्पन्ने सा च द्विविधा ... सेभिक्खुवा सुक्केसु वा = शुक्रेषु वा. ११४ १० ८० ९७ ९८ २० १९ ६ १८ ३७ ३९ १९ १९ २० ९९ २७ ४४ ४८ २९ ३० २९ ६३ ६६ ६९ ७९

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