Book Title: Samurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Author(s): Yashovijaysuri, Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 144
________________ संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य मुद्रित संस्करणों के पाठ में सपायंसि वा परपायंसि वा दिया वा' इतना पाठ अतिरिक्त है, जो कि ताडपत्रीय हस्तप्रतों में नहीं है। ध्यातव्य है कि किन्हीं अर्वाचीन अनुवादकों/विवेचकों ने 'अणुग्गए सूरिए' का अर्थ 'सूर्योदय से पूर्व' ऐसा न करके 'जहाँ सूर्य का आतप नहीं पहुँचता हो ऐसे स्थान पर' - इस प्रकार का अशुद्ध अर्थ किया है और उसे सिद्ध करने के लिए 'दिया वा' पाठ को प्रमाण रूप में प्रस्तुत किया है, परन्तु वास्तविकता तो यह है कि प्राचीन ताड़पत्रीय हस्तलिखित प्रतियों में 'दिया वा' सूत्र पाठ ही नहीं है। 'दिया वा' के नहीं होने की प्रबल पुष्टि निशीथ चूर्णि से भी होती है । निशीथ चूर्णि में आगत सूत्र के प्रतीक से यह स्पष्ट है कि सूत्र में दिया वा' नहीं है। निशीथ चूर्णि का पाठ इस प्रकार है : "...अन्नो वोसिरति। अहवा पउरदवेण कुरुकुयं करेति। ___'जे भिक्खू रातो वा' इत्यादि। राओ त्ति संझा, विगालो,त्ति संझावगमो।" यहाँ सूत्र प्रतीक में स्पष्टतः 'जे भिक्खू रातो वा' इत्यादि लिखा गया है तथा चूर्णिकार ने रात्रि और विकाल इन शब्दों की व्याख्या की है। इससे सुसिद्ध है कि मूलसूत्र में दिया वा' नहीं है। यहाँ उद्धृत चूर्णिपाठ मुद्रित संस्करण से उद्धृत नहीं किया गया है । मुद्रित संस्करण (संपादक-उपाध्याय अमरमुनि एवं मुनि कन्हैयालाल 'कमल', प्रकाशक-सन्मति ज्ञानपीठ-आगरा) में तो सूत्रों के प्रतीक ही नहीं दिये गये हैं। यहाँ उद्धृत चूर्णिपाठ प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों से तथा श्री पुण्यविजय जी कृत प्रेसकॉपी से मिलान करके लिखा है। निशीथ चूर्णि की दो हस्तलिखित प्रतियों का आधार लिया है, उनका विवरण इस प्रकार है : भण्डार का नाम क्रमांक ताड़पत्रीय/कागज | 1. पुणे-भांडारकर ओरिएन्टल रिसर्च इन्स्टिट्यूट भाता-19 ताड़पत्रीय । 2. पाटण-हेमचन्द्राचार्य ज्ञान भंडारपाकाहेम-10053 कागज क्रमांक

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